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Book Details

Description

        कर्म एवं कर्मफल के मूलभूत सिद्धान्तों का वर्णन करनी वाली एकमात्र पुस्तक, जिसमें वेद और वेदानुकूल ग्रन्थों में प्रतिपादित सिद्धान्तों का एक ही स्थान पर विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में ईश्वरीय और मानवीय कर्मफल व्यवस्था, मानवों की कर्म-स्तवन्तत्रता का वर्णन, चित्त का स्वरूप तथा वृत्तियाँ;  अविद्यादि क्लेशों का स्वरूप;  हिंसा, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार आदि मनोविकारों का वर्णन तथा इनसे बचने के उपाय;  मानवीय कर्म विवेचन;  आदर्श कर्म व्यवस्था;  मानवीय तथा ईश्वरीय कर्मफल व्यवस्था का वर्णन तथा अन्तर;  अशुभ और मिश्रित कर्मों के लिये शास्त्रों में प्रतिपादित “प्रायश्चित्त” का विधान;  नियतिवाद और नीतिवाद;  वैराग्य;  कर्म और कर्मफल सम्बन्धित विभिन्न शंकाओं का प्रश्नोत्तर द्वारा यथासम्भव समाधान भी दिया गया है।

प्रस्तुत ग्रन्थ की विशेषताएँ —

१.      कर्मफल के मूलभूत सिद्धान्तों का विवेचन।

२.      कर्मफल के रूप में मिलने वाले जाति, आयु और भोग का विस्तारपर्वूक विवेचन।

३.      कर्म के स्वरूप तथा भेदों का निरूपण।

४.      वैदिक दर्शनों में मानव जीवन की सफलता के लिए प्रतिपादित कर्म मीमांसा का दिग्दर्शन।

५.     परमात्मा द्वारा जीवों के लिए प्रदत्त “कर्म-स्वतन्त्रता” का निरूपण।

६.     अविद्या आदि क्लेशों के स्वरूप का विवेचन।

७.     हिंसा, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार आदि मनोविकारों का सविस्तार वर्णन तथा इनसे बचने के उपाय।

८.     मानवीय तथा ईश्वरीय कर्मफल व्यवस्था का वर्णन तथा दोनों व्यवस्थाओं का अन्तर।

९.     ग्रन्थ में प्रतिपादित सिद्धान्तों के पक्ष में वेदादि सत्शास्त्रों के प्रमाणों द्वारा पुष्टि।

१०.    अशुभ और मिश्रित कर्मों के लिये शास्त्रों में प्रतिपादित “प्रायश्चित्त” का विधान।

११.    मानव समाज में फैले नियतिवाद का सप्रमाण खण्डन तथा नीतिवाद का प्रतिपादन।

१२.    कर्म और कर्मफल सम्बन्धित विभिन्न शंकाओं का प्रश्नोत्तर द्वारा यथासम्भव समाधान।