ऋग्वेद का सामान्य परिचय
सृष्टि के आदि में परमात्मा द्वारा इसका ज्ञान अग्नि ॠषि को दिया गया था।
इस ऋग्वेद से सब पदार्थों की स्तुति होती है अर्थात् ईश्वर ने जिसमें सब पदार्थों के गुणों का प्रकाश किया है, इसलिये विद्वान् लोगों को चाहिये कि ऋग्वेद को प्रथम पढ़के उन मन्त्रों से ईश्वर से लेके पृथिवी-पर्य्यन्त सब पदार्थों को यथावत् जानके संसार में उपकार के लिये प्रयत्न करें। ऋग्वेद शब्द का अर्थ यह है कि जिससे सब पदार्थों के गुणों और स्वभाव का वर्णन किया जाय वह ‘ऋक्’ वेद अर्थात् जो यह सत्य सत्य ज्ञान का हेतु है, इन दो शब्दों से ‘ऋग्वेद’ शब्द बनता है।
ऋग्वेद की शाखा : महर्षि पतञ्जलि के अनुसार ऋग्वेद की २१ शाखाएँ हैं, किन्तु पाँच ही शाखाओं के नाम उपलब्ध होते हैं :---
(१) शाकल
(२) बाष्कल
(३) आश्वलायन
(४) शांखायन
(५) माण्डूकायन
संप्रति केवल शाकल शाखा ही उपलब्ध है !
ऋग्वेद के ब्राह्मण —
(१) ऐतरेय ब्राह्मण
(२) शांखायन ब्राह्मण
ऋग्वेद के आरण्यक —
(१) ऐतरेय आरण्यक
(२) शांखायन आरण्यक
ऋग्वेद के उपनिषद —
(१) ऐतरेय उपनिषद्
(२) कौषीतकि उपनिषद्
ऋग्वेद में बहु प्रयोग छंद
(१) गायत्री,
(२) उष्णिक्,
(३) अनुष्टुप,
(४) त्रिष्टुप,
(५) बृहती,
(६) जगती,
(७) पंक्ति,
ऋग्वेद का विभाजन —
(१) अष्टक क्रम:-
८ अष्टक
६४ अध्याय
२००६ वर्ग
(२) मण्डलक्रम:-
१० मण्डल
८५ अनुवाक
१०२८ सूक्त
१०५५२