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Yajurveda / 19 / 53

त्वया॒ हि नः॑ पि॒तरः॑ सोम॒ पूर्वे॒ कर्मा॑णि च॒क्रुः प॑वमान॒ धीराः॑। व॒न्वन्नवा॑तः परि॒धीँ१ऽरपो॑र्णु वी॒रेभि॒रश्वै॑र्म॒घवा॑ भवा नः॥५३॥

Veda : Yajurveda | Chapter : 19 | Mantra No : 53

In English:

Seer : sha~NkhaH | Devta : pitaraH | Metre : triShTup | Tone : dhaivataH

Subject : English Translation under process. Will be uploaded Shortly.

Verse : tvayaa hi naH pitaraH soma puurve karmaaNi chakruH pavamaana dhiiraaH. vanvannavaataH paridhii.N1.araporNu viirebhirashvairmaghavaa bhavaa naH .53 .

Component Words :
tvayaa. hi. naH. pitaraH. soma. puurve. karmaaNi. chakruH. pavamaana. dhiiraaH. vanvan. avaataH. paridhiiniti pari.adhiin. apa. uurNu. viirebhiH. ashvaiH. maghaveti magha.avaa. bhava. naH .53 .

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : शङ्खः | देवता : पितरः | छन्द : त्रिष्टुप् | स्वर : धैवतः

विषय : फिर उसी पूर्वोक्त विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

पदपाठ : त्वया॑। हि। नः॒। पि॒तरः॑। सो॒म॒। पूर्वे॑। कर्मा॑णि। च॒क्रुः। प॒व॒मा॒न॒। धीराः॑। व॒न्वन्। अवा॑तः। प॒रि॒धीनिति॑ परि॒ऽधीन्। अप॑। ऊ॒र्णु॒। वी॒रेभिः॑। अश्वैः॑। म॒घवेति॑ म॒घऽवा॑। भ॒व॒। नः॒॥५३॥

पदार्थ : हे (पवमान) पवित्रस्वरूप पवित्र कर्मकर्त्ता और पवित्र करनेहारे (सोम) ऐश्वर्य्ययुक्त सन्तान (त्वया) तेरे साथ (नः) हमारे (पूर्वे) पूर्वज (धीराः) बुद्धिमान् (पितरः) पिता आदि ज्ञानी लोग जिन धर्मयुक्त (कर्माणि) कर्मों को (चक्रुः) करने वाले हुए, (हि) उन्हीं का सेवन हम लोग भी करें (अवातः) हिंसाकर्मरहित (वन्वन्) धर्म का सेवन करते हुए सन्तान तू (वीरेभिः) वीर पुरुष और (अश्वैः) घोड़े आदि के साथ (नः) हमारे शत्रुओं की (परिधीन्) परिधि अर्थात् जिनमें चारों ओर से पदार्थों को धारण किया जाय, उन मार्गों को (अपोर्णु) आच्छादन कर और हमारे मध्य में (मघवा) धनवान् (भव) हूजिये॥५३॥

भावार्थ : मनुष्य लोग अपने धार्मिक पिता आदि का अनुसरण कर और शत्रुओं को निवारण करके अपनी सेना के अङ्गों की प्रशंसा से युक्त हुए सुखी होवें॥५३॥


In Sanskrit:

ऋषि : शङ्खः | देवता : पितरः | छन्द : त्रिष्टुप् | स्वर : धैवतः

विषय : पुनस्तमेव विषयमाह॥

पदपाठ : त्वया॑। हि। नः॒। पि॒तरः॑। सो॒म॒। पूर्वे॑। कर्मा॑णि। च॒क्रुः। प॒व॒मा॒न॒। धीराः॑। व॒न्वन्। अवा॑तः। प॒रि॒धीनिति॑ परि॒ऽधीन्। अप॑। ऊ॒र्णु॒। वी॒रेभिः॑। अश्वैः॑। म॒घवेति॑ म॒घऽवा॑। भ॒व॒। नः॒॥५३॥

पदार्थ : (त्वया) विदुषा (हि) खलु (नः) अस्माकम् (पितरः) पित्रध्यापकादयः (सोम) ऐश्वर्यसम्पन्न (पूर्वे) प्राचीना वृद्धाः (कर्माणि) (चक्रुः) कृतवन्तः (पवमान) पवित्र शुद्धकारक (धीराः) धीमन्तः (वन्वन्) धर्मं सेवमानः (अवातः) अविद्यमानो वातो हिंसनं यस्य (परिधीन्) यत्र परितः सर्वतो धीयन्ते तान् (अप) दूरीकरणे (ऊर्णु) आच्छादय (वीरेभिः) वीरैः (अश्वैः) तुरङ्गैः (मघवा) प्रशंसितधनयुक्त (भव) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङः। [अष्टा॰६.३.१३५] इति दीर्घः। (नः) अस्माकम्॥५३॥

अन्वय : हे पवमान सोम! त्वया सह नः पूर्वे धीराः पितरो यानि धर्म्याणि कर्माणि चक्रुस्तानि हि वयमप्यनुतिष्ठेम। अवातो वन्वन् त्वं वीरेभिरश्वैश्च सह नः शत्रून् परिधीनपोर्णु मघवा च भव॥५३॥

भावार्थ : मनुष्याः स्वेषां धार्मिकाणां पितॄणामनुकरणं कृत्वा शत्रून्निवार्य्य स्वसेनाङ्गप्रशंसायुक्तास्सन्तः सुखिनः स्युः॥५३॥