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Rigveda / 9 / 32 / 2

आदीं॑ त्रि॒तस्य॒ योष॑णो॒ हरिं॑ हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः । इन्दु॒मिन्द्रा॑य पी॒तये॑ ॥

Veda : Rigveda | Mandal : 9 | Sukta : 32 | Mantra No : 2

In English:

Seer : shyaavaashvaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : nichRRidgaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready

Verse : aadii.m tritasya yoShaNo hari.m hinvantyadribhiH . indumindraaya piitaye .

Component Words :
aat . iim . tritasya . yoShaNaH . harim . hinvanti . adri.abhiH . indum . indraaya . piitaye . 9.32.2

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : श्यावाश्वः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : निचृद्गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय :

पदपाठ : आत् । ई॒म् । त्रि॒तस्य॑ । योष॑णः । हरि॑म् । हि॒न्व॒न्ति॒ । अद्रि॑ऽभिः । इन्दु॑म् । इन्द्रा॑य । पी॒तये॑ ॥ ९.३२.२

पदार्थ : (त्रितस्य) जाग्रत् स्वप्न सुषुप्ति इन तीनों अवस्थाओं में अप्रतिहत प्रभाववाले भक्त पुरुष की (योषणः) शक्तियें (इन्द्राय पीतये) जीवात्मा की तृप्ति के लिये (आत् ईम्) उस पूर्वोक्त (इन्दुम्) परमैश्वर्यवाले (हरिम्) सब दुःखों के हरनेवाले परमात्मा को (अद्रिभिः) इन्द्रियवृत्तियों द्वारा (हिन्वन्ति) प्रेरित करती हैं ॥२॥

भावार्थ : जो लोग परमात्मा की भक्ति में रत हैं, उनकी इन्द्रियवृत्तियें परमात्मज्ञान की उपलब्धि के लिये सदैव तत्पर रहती हैं ॥२॥


In Sanskrit:

ऋषि : श्यावाश्वः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : निचृद्गायत्री | स्वर : षड्जः

पदपाठ : आत् । ई॒म् । त्रि॒तस्य॑ । योष॑णः । हरि॑म् । हि॒न्व॒न्ति॒ । अद्रि॑ऽभिः । इन्दु॑म् । इन्द्रा॑य । पी॒तये॑ ॥ ९.३२.२

भावार्थ :