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Rigveda / 9 / 56 / 3

अ॒भि त्वा॒ योष॑णो॒ दश॑ जा॒रं न क॒न्या॑नूषत । मृ॒ज्यसे॑ सोम सा॒तये॑ ॥

Veda : Rigveda | Mandal : 9 | Sukta : 56 | Mantra No : 3

In English:

Seer : avatsaaraH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready

Verse : abhi tvaa yoShaNo dasha jaara.m na kanyaanuuShata . mRRijyase soma saataye .

Component Words :
abhi . tvaa . yoShaNaH . dasha . jaaram . na . kanyaa . anuuShata . mRRijyase . soma . saataye . 9.56.3

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : अवत्सारः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय :

पदपाठ : अ॒भि । त्वा॒ । योष॑णः । दश॑ । जा॒रम् । न । क॒न्या॑ । अ॒नू॒ष॒त॒ । मृ॒ज्यसे॑ । सो॒म॒ । सा॒तये॑ ॥ ९.५६.३

पदार्थ : (कन्या जारम् न) जिस प्रकार दीप्ति अग्नि को प्राप्त होती है, उसी प्रकार (दश योषणः) दश इन्द्रियवृत्तियें (त्वा अभ्यनूषत) आपको स्तुति द्वारा प्राप्त होती हैं (सोम) हे परमात्मन् ! (सातये) आप इष्टप्राप्ति के लिये (मृज्यसे) ध्यानगोचर किये जाते हैं ॥३॥

भावार्थ : संस्कारी पुरुषों की इन्द्रियवृत्तियें उसको विषय करती हैं, असंस्कारियों को नहीं ॥३॥


In Sanskrit:

ऋषि : अवत्सारः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

पदपाठ : अ॒भि । त्वा॒ । योष॑णः । दश॑ । जा॒रम् । न । क॒न्या॑ । अ॒नू॒ष॒त॒ । मृ॒ज्यसे॑ । सो॒म॒ । सा॒तये॑ ॥ ९.५६.३

भावार्थ :