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Samveda/224

कदु प्रचेतसे महे वचो देवाय शस्यते। तदिध्यस्य वर्धनम्॥२२४

Veda : Samveda | Mantra No : 224

In English:

Seer : vaamadevo gautamaH | Devta : indraH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : kadu prachetase mahe vacho devaaya shasyate . tadidhyasya vardhanam.224

Component Words :
kat.u. prachetase.pra.chetase .mahe .vachaH. devaaya. shasyate. tat. it. hi. asya .vardhanam ..

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : वामदेवो गौतमः | देवता : इन्द्रः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में यह बताया गया है कि परमात्मा की स्तुति हम क्यों करें।

पदपाठ : कत्।उ। प्रचेतसे।प्र।चेतसे ।महे ।वचः। देवाय। शस्यते। तत्। इत्। हि। अस्य ।वर्धनम् ।२।

पदार्थ : (कत् उ) किसलिए (प्रचेतसे) प्रकृष्ट ज्ञान वा प्रकृष्ट चित्तवाले, (महे) महान् (देवाय) दिव्य गुण-कर्म-स्वभाववाले इन्द्र परमेश्वर के लिए (वचः) स्तुति-वचन (शस्यते) उच्चारण किया जाता है? यह प्रश्न है। इस प्रश्न का उत्तर है—(हि) क्योंकि (तत्) वह स्तुति-वचन (अस्य) इस स्तुतिकर्ता यजमान का (वर्धनम्) बढ़ानेवाला होता है ॥२॥

भावार्थ : परमेश्वर के लिए जो स्तुति-वचन कहे जाते हैं, उनसे स्तोता की ही वृद्धि और उन्नति होती है, यह जानना चाहिए ॥२॥


In Sanskrit:

ऋषि : वामदेवो गौतमः | देवता : इन्द्रः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ कुतोऽस्माभिर्देवस्य परमात्मनः स्तुतिः कार्येत्युच्यते।

पदपाठ : कत्।उ। प्रचेतसे।प्र।चेतसे ।महे ।वचः। देवाय। शस्यते। तत्। इत्। हि। अस्य ।वर्धनम् ।२।

पदार्थ : (कत्१ उ) किमर्थं खलु (प्रचेतसे) प्रकृष्टं चेतो ज्ञानं चित्तं वा यस्य तस्मै, प्रकृष्टज्ञानाय प्रकृष्टचित्ताय वा, (महे) महते, (देवाय) दिव्यगुणकर्मस्वभावाय इन्द्राय परमेश्वराय (वचः) स्तुतिवचनं (शस्यते) उच्चार्यते ? इति प्रश्नः। तदुत्तरं दीयते—(हि) यस्मात् (तत्) तत् स्तुतिवचनम् (इत्) निश्चयेन (अस्य२) स्तोतुर्यजमानस्य (वर्द्धनम्) वृद्धिकरं भवति ॥२॥

भावार्थ : परमेश्वराय यानि स्तुतिवचांस्युदीर्यन्ते तैः स्तोतुरेव वृद्धिरुन्नतिश्च भवतीति विज्ञेयम् ॥२॥

टिप्पणी:१. कत्। किमः उत्तरस्याः पञ्चम्याः अत् आदेशः। कस्मात् कारणात्। उ इति पादपूरणः—इति वि०।२. अस्य देवस्य वर्धनं वृद्धिकरं भवति—इति भ०। अस्य यजमानस्य—इति सा०।