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Samveda/891

पवमानस्य ते रसो दक्षो वि राजति द्युमान्। ज्योतिर्विश्व स्वर्दृशे (पा)।। [धा. । उ । स्व. ।]॥८९१

Veda : Samveda | Mantra No : 891

In English:

Seer : ahamiiyuraa.mgirasaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : pavamaanasya te raso dakSho vi raajati dyumaan . jyotirvishva.m svardRRishe.891

Component Words :
pavamaanasya. te. rasaH .dakShaH .vi .raajati .dyumaan .jyotiH .vishvam .svaH. dRRishe.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : अहमीयुरांगिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में पुनः उन्हीं का विषय वर्णित है।

पदपाठ : पवमानस्य। ते। रसः ।दक्षः ।वि ।राजति ।द्युमान् ।ज्योतिः ।विश्वम् ।स्वः। दृशे॥

पदार्थ : हे परमात्मन् वा आचार्य ! (पवमानस्य) चित्त की शुद्धि करनेवाले (ते) आपका (द्युमान्) दीप्तिमान् (रसः) आनन्दरस वा ज्ञानरस और (दक्षः) ब्रह्मबल (वि राजति) विशेष रूप से शोभित है। वह (स्वः दृशे) मोक्ष-सुख के दर्शनार्थ (विश्वं ज्योतिः) सम्पूर्ण अन्तर्दृष्टि को देता है ॥३॥

भावार्थ : आचार्य की सेवा और परमात्मा की उपासना करके लोकविद्या, ब्रह्मविद्या, परम आह्लाद, ब्रह्मवर्चस और दिव्य दृष्टि प्राप्त करके मनुष्य मोक्ष पाने योग्य हो जाते हैं ॥३॥


In Sanskrit:

ऋषि : अहमीयुरांगिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ पुनरपि तयोरेव विषयो वर्ण्यते।

पदपाठ : पवमानस्य। ते। रसः ।दक्षः ।वि ।राजति ।द्युमान् ।ज्योतिः ।विश्वम् ।स्वः। दृशे॥

पदार्थ : हे परमात्मन् आचार्य वा ! (पवमानस्य) चित्तशोधकस्य (ते) तव (द्युमान्) दीप्तिमान् (रसः) आनन्दरसो ज्ञानरसो वा (दक्षः) ब्रह्मबलं च (विराजति) विशेषेण शोभते। सः (स्वःदृशे) मोक्षसुखं द्रष्टुम् (विश्वं ज्योतिः) सम्पूर्णाम् अन्तर्दृष्टिं, ददातीति शेषः ॥३॥

भावार्थ : आचार्यस्य सेवां परमात्मन उपासनां च कृत्वा लोकविद्यां ब्रह्मविद्यां परमाह्लादं ब्रह्मवर्चसं दिव्यदृष्टिञ्च प्राप्य जनाः मोक्षमधिगन्तुमर्हन्ति ॥३॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।६१।१८ ‘पव॑मान॒ रस॒स्तव॒’ इति प्रथमः पादः।