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Samveda/911

राजानावनभिद्रुहा ध्रुवे सदस्युत्तमे। सहस्रस्थूण आशाते॥९११

Veda : Samveda | Mantra No : 911

In English:

Seer : gRRitsamadaH shaunakaH | Devta : mitraavaruNau | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : raajaanaavanabhidruhaa dhruve sadasyuttame . sahasrasthuuNa aashaate.911

Component Words :
raajaanau .anabhidruhaa .an.abhidruhaa .dhruve .sadasi .uttame .sahasrasthuNe .sahasra .sthuuNe .aashaate iti.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : गृत्समदः शौनकः | देवता : मित्रावरुणौ | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में पुनः वही विषय है।

पदपाठ : राजानौ ।अनभिद्रुहा ।अन्।अभिद्रुहा ।ध्रुवे ।सदसि ।उत्तमे ।सहस्रस्थुणे ।सहस्र ।स्थूणे ।आशाते इति॥

पदार्थ : प्रथम—आत्मा और मन के पक्ष में। (अनभिद्रुहा) द्रोह न करनेवाले, (राजानौ) राजाओं के समान विद्यमान आत्मा और मन (ध्रुवे) दृढ़ अङ्गोंवाले, (उत्तमे) सर्वोत्कृष्ट, (सहस्रस्थूणे) हड्डीरूप बहुत सारे खम्भोंवाले (सदसि) देहरूप घर में (आशाते) निवास करते हैं ॥द्वितीय—राजा और प्रधानमन्त्री के पक्ष में। (अनभिद्रुहा) प्रजा से द्रोह न करनेवाले, (राजानौ) राष्ट्र के उच्चपदों पर विराजमान राजा और प्रधानमन्त्री (धुवे) स्थिर, (उत्तमे) सर्वोत्कृष्ट, (सहस्रस्थूणे) हजार खम्भोंवाले (सदसि) सभागृह में (आशाते) आकर बैठते हैं ॥२॥यहाँ श्लेषालङ्कार है ॥२॥

भावार्थ : जैसे आत्मा और मन मनुष्य के जीवन को उन्नत करते हैं, वैसे ही राजा और प्रधानमन्त्री राष्ट्र के जीवन को उन्नत करें ॥२॥


In Sanskrit:

ऋषि : गृत्समदः शौनकः | देवता : मित्रावरुणौ | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ पुनस्तमेव विषयमाह।

पदपाठ : राजानौ ।अनभिद्रुहा ।अन्।अभिद्रुहा ।ध्रुवे ।सदसि ।उत्तमे ।सहस्रस्थुणे ।सहस्र ।स्थूणे ।आशाते इति॥

पदार्थ : प्रथमः—आत्ममनःपक्षे। (अनभिद्रुहा) द्रोहरहितौ (राजानौ) राजवद् विद्यमाने आत्ममनसी (ध्रुवे) दृढावयवे, (उत्तमे) सर्वोत्कृष्टे, (सहस्रस्थूणे) अस्थिरूपबहुस्तम्भे (सदसि) देहगृहे (आशाते) आनशाते व्याप्नुतः निवसतः। [अशूङ् व्याप्तौ ‘छन्दसि लुङ्लङ्लिटः।’ अ० ३।४।६ इति वर्तमाने लिट्। नुडभावश्छान्दसः] ॥द्वितीयः—नृपतिप्रधानमन्त्रिपक्षे। (अनभिद्रुहा) प्रजां प्रति द्रोहरहितौ, (राजानौ) राष्ट्रस्य उच्चपदयोः विराजमानौ नृपतिप्रधानमन्त्रिणौ (ध्रुवे) स्थिरे, (उत्तमे) सर्वोत्कृष्टे, (सहस्रस्थूणे) सहस्रस्तम्भे (सदसि) सभागृहे (आशाते) व्याप्नुतः, आगत्य तिष्ठतः ॥२॥२अत्र श्लेषालङ्कारः ॥२॥

भावार्थ : यथाऽऽत्ममनसी मनुष्यस्य जीवनमुन्नयतस्तथैव नृपति- प्रधानमन्त्रिणौ राष्ट्रस्य जीवनमुन्नयेताम् ॥२॥

टिप्पणी:१. ऋ० २।४१।५ ‘आशाते’ इत्यत्र ‘आसाते’ इति पाठः।२. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिर्मन्त्रमेतं राजप्रधानपुरुषविषये व्याख्यातवान्।