Samveda/962
अभि गावो अधन्विषुरापो न प्रवता यतीः। पुनाना इन्द्रमाशत॥९६२
Veda : Samveda | Mantra No : 962
In English:
Seer : asitaH kaashyapo devalo vaa | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH
Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.
Verse : abhi gaavo adhanviShuraapo na pravataa yatiiH . punaanaa indramaashata.962
Component Words : abhi .gaavaH .adhanviShu .aapaH. na .pravataa .yatiiH .punaanaaH .indram .aashat.
Word Meaning :
Verse Meaning :
Purport :
In Hindi:
ऋषि : असितः काश्यपो देवलो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : अगले मन्त्र में पुनः उसी विषय का वर्णन है।
पदपाठ : अभि ।गावः ।अधन्विषु ।आपः। न ।प्रवता ।यतीः ।पुनानाः ।इन्द्रम् ।आशत्॥
पदार्थ : (प्रवता) ढालू प्रदेश पर (यतीः) बहते हुए (आपः न) जलों के समान (गावः) गतिमय अर्थात् सक्रिय ब्रह्मानन्दरूप सोमरस की धाराएँ (अभि अधन्विषुः) जीवात्मा की ओर दौड़ रही हैं। (पुनानाः) पवित्रता करती हुई वे (इन्द्रम्) जीवात्मा को (आशत) व्याप्त कर रही हैं ॥२॥यहाँ उपमालङ्कार है ॥२॥
भावार्थ : जल जैसे निचले प्रदेश की ओर दौड़ते हुए उस प्रदेश को पवित्र करते हैं, वैसे ही ब्रह्मानन्द नम्र जीवात्मा के प्रति दौड़ते हुए उसे पवित्र करते हैं ॥२॥
In Sanskrit:
ऋषि : असितः काश्यपो देवलो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : अथ पुनस्तमेव विषयमाह।
पदपाठ : अभि ।गावः ।अधन्विषु ।आपः। न ।प्रवता ।यतीः ।पुनानाः ।इन्द्रम् ।आशत्॥
पदार्थ : (प्रवता) प्रवणवता देशेन (यतीः) गच्छन्त्यः, प्रवहन्त्यः (आपः न) उदकानि इव (गावः२) गतिमयाः सक्रियाः ब्रह्मानन्दसोमधाराः (अभि अधन्विषुः) जीवात्मानं प्रति धावन्ति। (पुनानाः) पवित्रतां कुर्वाणाः ताः (इन्द्रम्) जीवात्मानम् (आशत) व्याप्नुवन्ति ॥२॥अत्रोपमालङ्कारः ॥२॥
भावार्थ : आपो यथा निम्नप्रदेशं प्रति धावन्त्यस्तं पवित्रयन्ति तथैव ब्रह्मानन्दा नम्रं जीवात्मानं प्रति द्रवन्तस्तं पुनन्ति ॥२॥
टिप्पणी:१. ऋ० ९।२४।२।२. गावः आदित्यरश्मयः उदकानि सोमरसा गावश्च—इति वि०।