Samveda/970
परि विश्वानि चेतसा मृज्यसे पवसे मती। स नः सोम श्रवो विदः॥९७०
Veda : Samveda | Mantra No : 970
In English:
Seer : asitaH kaashyapo devalo vaa | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH
Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.
Verse : pari vishvaani chetasaa mRRijyase pavase matii . sa naH soma shravo vidaH.970
Component Words : pari .vishvaani .chetasaa .mRRijyase .pavase .matii .saH .naH .soma .shravaH .vidaH.
Word Meaning :
Verse Meaning :
Purport :
In Hindi:
ऋषि : असितः काश्यपो देवलो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।
पदपाठ : परि ।विश्वानि ।चेतसा ।मृज्यसे ।पवसे ।मती ।सः ।नः ।सोम ।श्रवः ।विदः॥
पदार्थ : हे परमात्मन् ! (विश्वानि) सब सांसारिक भोगविलास आदि को (परि) छोड़कर, आप ही हमारे द्वारा(चेतसा) चित्त से और (मती) मति से (मृज्यसे)अलंकृत किये जा रहे हो, क्योंकि आप हमें (पवसे) पवित्र करते हो। हे (सोम) परमैश्वर्यशालिन् ! (सः) वह आप (नः) हमें (श्रवः) यश (विदः) प्राप्त कराओ ॥३॥
भावार्थ : जब मनुष्य बाह्य विषयों से मन को हटाकर और परमात्मा में ही केन्द्रित करके परमात्मा का ध्यान करता है, तब वह उसे अत्यधिक पवित्रता और अविनश्वर यश प्रदान करता है ॥३॥
In Sanskrit:
ऋषि : असितः काश्यपो देवलो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : अथ परमात्मानं प्रार्थयते।
पदपाठ : परि ।विश्वानि ।चेतसा ।मृज्यसे ।पवसे ।मती ।सः ।नः ।सोम ।श्रवः ।विदः॥
पदार्थ : हे परमात्मन् ! (विश्वानि) सर्वाणि सांसारिकभोगविलासादीनि (परि) परिहृत्य त्वमेव (चेतसा) चित्तेन (मती) मत्या च। [अत्र ‘सुपां सुलुक्०’। अ० ७।१।३९ इत्यनेन तृतीयैकवचने पूर्वसवर्णदीर्घः।] (मृज्यसे) अलङ्क्रियसे, यतः त्वम् (नः) अस्मान् (पवसे) पुनासि। हे (सोम) परमैश्वर्यवन् ! (सः) असौ त्वम् (नः) अस्मान् (श्रवः) यशः (विदः) लम्भय ॥३॥
भावार्थ : यदा मनुष्यो बाह्यविषयेभ्यो मनः प्रतिनिवर्त्य परमात्मन्येव च केन्द्रीकृत्य तं ध्यायति तदा स तस्मै नितान्तं पावित्र्यमविनश्वरं यशश्च प्रयच्छति ॥३॥
टिप्पणी:१. ऋ० ९।२०।३ ‘मृज्यसे’ इत्यत्र ‘मृ॒शसे॒’।