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Samveda/1035

शुम्भमाना ऋतायुभिर्मृज्यमाना गभस्त्योः। पवन्ते वारे अव्यये॥१०३५

Veda : Samveda | Mantra No : 1035

In English:

Seer : kashyapo maariichaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : shumbhamaano RRitaayubhirmRRijyamaanaa gabhastyoH . pavante vaare avyaye.1035

Component Words :
shumbhamaanaaH .RRitaayubhiH .sRRijyamaanaaH .gabhastyoH .pavante .vaare. avyaye.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : कश्यपो मारीचः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में फिर ब्रह्मानन्द-रस के प्रवाह का वर्णन है।

पदपाठ : शुम्भमानाः ।ऋतायुभिः ।सृज्यमानाः ।गभस्त्योः ।पवन्ते ।वारे। अव्यये॥

पदार्थ : (शुम्भमानाः) शोभित होते हुए, (ऋतायुभिः) अध्यात्म-यज्ञ के अभिलाषियों द्वारा (गभस्त्योः) मन, बुद्धि-रूप द्यावापृथिवियों में (मृज्यमानाः) अलङ्कृत किये जाते हुए ब्रह्मानन्द-रूप सोमरस (अव्यये) अविनाशी (वारे) दोषों के निवारक अन्तरात्मा में (पवन्ते) प्रवाहित हो रहे हैं ॥२॥

भावार्थ : धर्ममेघ-समाधि में जब योगी के अन्तरात्मा में ब्रह्मानन्द के झरने झरते हैं, तब उसके मन, बुद्धि, प्राण, इन्द्रिय आदि सभी रस से सिंचे हुए के सदृश हो जाते हैं ॥२॥


In Sanskrit:

ऋषि : कश्यपो मारीचः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ पुनरपि ब्रह्मानन्दरसप्रवाहं वर्णयति।

पदपाठ : शुम्भमानाः ।ऋतायुभिः ।सृज्यमानाः ।गभस्त्योः ।पवन्ते ।वारे। अव्यये॥

पदार्थ : (शुम्भमानाः) शोभमानाः, [शुम्भ शोभार्थे, तुदादिः।] (ऋतायुभिः) अध्यात्मयज्ञेच्छुभिः। [ऋतायुः यज्ञकामः। निरु० १०।४५। ऋतम् उपासनायज्ञमात्मनः कामयन्ते इति ऋतायवः तैः।] (गभस्त्योः) मनोबुद्धिरूपयोः द्यावापृथिव्योः (मृज्यमानाः) अलङ्क्रियमाणाः, [मृजू शौचालङ्कारयोः।] सोमाः ब्रह्मानन्दरसाः (अव्यये) अविनाशिनि (वारे) दोषाणां वारके अन्तरात्मनि (पवन्ते) प्रवहन्ति ॥२॥

भावार्थ : धर्ममेघसमाधौ यदा योगिनोऽन्तरात्मनि ब्रह्मानन्दनिर्झरा निर्झरन्ति तदा तस्य मनोबुद्धिप्राणेन्द्रियादीनि सर्वाण्यपि रससिक्तानीव जायन्ते ॥२॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।६४।५।