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Samveda/1120

हिन्वानासो रथा इव दधन्विरे गभस्त्योः। भरासः कारिणामिव॥११२०

Veda : Samveda | Mantra No : 1120

In English:

Seer : asitaH kaashyapo devalo vaa | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : hinvaanaaso rathaa iva dadhanvire gabhastyoH . bharaasaH kaariNaamiva.1120

Component Words :
hinvaanaasaH .rathaaH .iva .dadhanvire .gabhastyoH .bharaasaH .kaariNaam .

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : असितः काश्यपो देवलो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में पुनः गुरुओं का ही विषय है।

पदपाठ : हिन्वानासः ।रथाः ।इव ।दधन्विरे ।गभस्त्योः ।भरासः ।कारिणाम् ॥

पदार्थ : (इव) जैसे (हिन्वानासः) चलते हुए (रथाः) रथ और (इव) जैसे (कारिणाम्) भारवाहक कर्मचारियों के (भरासः) भार (गभस्त्योः) बाहुओं से (दधन्विरे) धारण किये जाते हैं, वैसे ही (सोमासः) विद्वान् गुरुजन राजा द्वारा और गृहस्थ प्रजाजनों द्वारा धन आदि के दान से (दधन्विरे) धारण किये जाते हैं। यहाँ ‘सोमासः’ पद पूर्वमन्त्र से लाया गया है ॥५॥यहाँ उपमालङ्कार है ॥५॥

भावार्थ : जैसे मार्ग पर चलते हुए रथ घोड़ों की लगाम के नियन्त्रण द्वारा बाहुओं से धारण किये जाते हैं और जैसे सिर पर भार ढोते हुए श्रमिक उस भार को बाहुओं से धारण किये रखते हैं, वैसे ही विद्वान् गुरुजन राजकीय सहायता द्वारा धारण किये जाने चाहिएँ ॥५॥


In Sanskrit:

ऋषि : असितः काश्यपो देवलो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ पुनरपि गुरूणामेव विषयमाह।

पदपाठ : हिन्वानासः ।रथाः ।इव ।दधन्विरे ।गभस्त्योः ।भरासः ।कारिणाम् ॥

पदार्थ : (हिन्वानासः) गच्छन्तः (रथाः इव) शकटाः यथा किञ्च (कारिणाम्) भारवाहिनां कर्मकराणाम् (भरासः इव) भाराः यथा (गभस्त्योः) बाह्वोः (दधन्विरे) धीयन्ते, तथैव (सोमासः) विद्वांसो गुरवः, (नृपतिना) गृहस्थैः प्रजाजनैश्च धनादिदानेन (दधन्विरे) धीयन्ते। [अत्र ‘सोमासः’ इति पदं पूर्वमन्त्रादाकृष्यते] ॥५॥अत्रोपमालङ्कारः ॥५॥

भावार्थ : यथा मार्गं गच्छन्तो रथाः प्रग्रहनियन्त्रेण बाहुभ्यां धीयन्ते यथा वा शिरसा भारं वहन्तः श्रमिकास्तं भारं बाहुभ्यां दधति, तथैव विद्वांसो गुरुजनाः राजसाहाय्यदानेन धारणीयाः ॥५॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।१०।२।