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Samveda/1157

सखाय आ नि षीदत पुनानाय प्रगायत। शिशुं न यज्ञैः परि भूषत श्रिये॥११५७

Veda : Samveda | Mantra No : 1157

In English:

Seer : parvatanaaradau kaaNvau shikhaNDinyaavapsaasau kaashyapau vaa | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : uShNik | Tone : RRIShabhaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : sakhaaya aa ni Shiidata punaanaaya pragaayata . shishu.m naH yaj~naiH pari bhuuShata shriye.1157

Component Words :
sakhaayaH .sa .khaayaH .aa .ni. siidata. punaanaaya .pra .gaayata .shisham. na. yaj~naiH .pari .bhuuShata .shriye.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : पर्वतनारदौ काण्वौ शिखण्डिन्यावप्सासौ काश्यपौ वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : उष्णिक् | स्वर : ऋषभः

विषय : प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ५६८ क्रमाङ्क पर परमात्मा की उपासना के विषय में की जा चुकी है। यहाँ अपने अन्तरात्मा का विषय वर्णित करते हैं।

पदपाठ : सखायः ।स ।खायः ।आ ।नि। सीदत। पुनानाय ।प्र ।गायत ।शिशम्। न। यज्ञैः ।परि ।भूषत ।श्रिये॥

पदार्थ : हे (सखायः) साथियो ! तुम (आ निषीदत) आकर बैठो, (पुनानाय) मन, बुद्धि आदि को पवित्र करनेवाले अपने अन्तरात्मा के लिए (प्र गायत) उद्बोधन-गीत गाओ और (श्रिये) शोभा के लिए उस सोम नामक अन्तरात्मा को (यज्ञैः) देवपूजा, सङ्गतिकरण, दान आदियों से (परि भूषत) अलंकृत करो, (शिशुं न) जैसे शिशु को सुरम्य वस्त्र, आभूषण आदियों से अलंकृत करते हैं ॥१॥इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥१॥

भावार्थ : जीवात्मा में महान् शक्ति निहित है। उद्बोधन-गीतों से उस की शक्ति को जगाना चाहिए और नवीन-नवीन गुणों से तथा यज्ञ-भावनाओं से जीवात्मा को अलंकृत करना चाहिए ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : पर्वतनारदौ काण्वौ शिखण्डिन्यावप्सासौ काश्यपौ वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : उष्णिक् | स्वर : ऋषभः

विषय : तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ५६८ क्रमाङ्के परमात्मोपासनाविषये व्याख्याता। अत्र स्वान्तरात्मविषयमाह।

पदपाठ : सखायः ।स ।खायः ।आ ।नि। सीदत। पुनानाय ।प्र ।गायत ।शिशम्। न। यज्ञैः ।परि ।भूषत ।श्रिये॥

पदार्थ : हे (सखायः) सुहृदः। यूयम् (आ निषीदत) आगत्य निषण्णा भवत, (पुनानाय) मनोबुद्ध्यादीनां पावकाय स्वान्तरात्मने (प्र गायत) उद्बोधनगीतानि गायत। अपि च (श्रिये) शोभायै, तम् सोमम् आत्मानम् (यज्ञैः) देवपूजासंगतिकरणदानादिभिः (परिभूषत) अलङ्कुरुत, (शिशुं न) यथा शिशुं सुरम्यवस्त्रालङ्कारादिभिः अलङ्कुर्वन्ति ॥१॥अत्रोपमालङ्कारः ॥१॥

भावार्थ : जीवात्मनि महती शक्तिर्निहिताऽस्ति। उद्बोधनगीतैस्तस्य सा शक्तिर्जागरयितव्या, नूतनैर्गुणग्रामैर्यज्ञभावनाभिश्च जीवात्माऽलङ्करणीयः ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।१०४।१, साम० ५६८।