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Samveda/1185

नृचक्षसं त्वा वयमिन्द्रपीत स्वर्विदम्। भक्षीमहि प्रजामिषम्॥११८५

Veda : Samveda | Mantra No : 1185

In English:

Seer : asitaH kaashyapo devalo vaa | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : nRRichakShasa.m tvaa vayamindrapiita.m svarvidam . bhakShiimahi prajaamiSham.1185

Component Words :
nRRichakShasam .nRRi .chakShasam .tvaa. vayam .indrapiitam .indra. piitam .svaravidam .svaH .vidam .bhakShiimahi .prajaam .pra .jaam .iSham.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : असितः काश्यपो देवलो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।

पदपाठ : नृचक्षसम् ।नृ ।चक्षसम् ।त्वा। वयम् ।इन्द्रपीतम् ।इन्द्र। पीतम् ।स्वरविदम् ।स्वः ।विदम् ।भक्षीमहि ।प्रजाम् ।प्र ।जाम् ।इषम्॥

पदार्थ : हे सोम अर्थात् जगत् को पैदा करनेवाले, रस के भण्डार परमात्मन् ! (नृचक्षसम्) मनुष्यों के द्रष्टा, (इन्द्रपीतम्) उपासक जीवात्माओं से तन्मय होकर पिये गये, (स्वर्विदम्) दिव्य प्रकाश वा मोक्षसुख प्राप्त करानेवाले (त्वा) आपको (वयम्) हम आपके उपासक पुकार रहे हैं। हम आपसे (प्रजाम्) सद्गुणरूप सन्तान और (इषम्) अभीष्ट आनन्द-रस की धारा (भक्षीमहि) प्राप्त करें ॥८॥

भावार्थ : परमेश्वर का बार-बार ध्यान करके उपासक दिव्य आनन्द-रस को और मोक्ष को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है ॥८॥


In Sanskrit:

ऋषि : असितः काश्यपो देवलो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ परमात्मानं प्रार्थयते।

पदपाठ : नृचक्षसम् ।नृ ।चक्षसम् ।त्वा। वयम् ।इन्द्रपीतम् ।इन्द्र। पीतम् ।स्वरविदम् ।स्वः ।विदम् ।भक्षीमहि ।प्रजाम् ।प्र ।जाम् ।इषम्॥

पदार्थ : हे सोम जगत्स्रष्टः रसागार परमात्मन् ! (नृचक्षसम्) नृणां द्रष्टारम्, (इन्द्रपीतम्) इन्द्रैः त्वदुपासकैः जीवात्मभिः आस्वादितम्, (स्वर्विदम्) दिव्यप्रकाशस्य मोक्षसुखस्य वा लम्भकम् (त्वा) त्वाम् (वयम्) तवोपासकाः आह्वयामः इति शेषः। वयं त्वत् (प्रजाम्) सद्गुणसन्ततिम् (इषम्)आनन्दरसधारां च। [इषा अद्भिः इति निरुक्तम् (१०।२६)।] (भक्षीमहि) प्राप्नुयाम। [भज सेवायाम्, भ्वादिः, लिङि छान्दसः शपो लुक्] ॥८॥

भावार्थ : परमेश्वरं ध्यायं ध्यायमुपासको दिव्यानन्दरसं मोक्षं च प्राप्तुं क्षमते ॥८॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।८।९।