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Samveda/1205

उत्ते शुष्मास ईरते सिन्धोरूर्मेरिव स्वनः। वाणस्य चोदया पविम्॥१२०५

Veda : Samveda | Mantra No : 1205

In English:

Seer : uchathyaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : utte shuShmaasa iirate sindhoruurmeriva svanaH . vaaNasya chodayaa pavim.1205

Component Words :
ut .te .shuShmaasaH .iirate.sindhoH .uurmeH .iva. svanaH .vaaNasya .chodaya .pavim.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : उचथ्यः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : प्रारम्भ में उपासक की स्तोत्रगान की पद्धति का वर्णन है।

पदपाठ : उत् ।ते ।शुष्मासः ।ईरते।सिन्धोः ।ऊर्मेः ।इव। स्वनः ।वाणस्य ।चोदय ।पविम्॥

पदार्थ : हे भक्ति को सिद्ध करनेवाले उपासक ! (ते) तेरे (शुष्मासः) बलवान् स्तोत्रसमूह (उदीरते) उठ रहे हैं। उनकी (सिन्धोः ऊर्मेः इव) समुद्र की लहर जैसी (स्वनः) गीत की ध्वनि है। तू (वाणस्य) वीणादण्ड की (पवित्रम्) तन्त्री को (चोदय) प्रेरित कर, अर्थात् वीणा-वादन के साथ प्रभु-भक्ति के स्तोत्र तरङ्गित कर ॥१॥

भावार्थ : मधुर गीतों के साथ जब सितार, मञ्जीरे आदि बाजे ताल-मेल पूर्वक बजाये जाते हैं, तब अपूर्व भक्ति का प्रवाह उत्तरङ्गित होता है ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : उचथ्यः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : तत्रादावुपासकस्य स्तोत्रगानपद्धतिमाह।

पदपाठ : उत् ।ते ।शुष्मासः ।ईरते।सिन्धोः ।ऊर्मेः ।इव। स्वनः ।वाणस्य ।चोदय ।पविम्॥

पदार्थ : हे भक्तिसाधक उपासक ! (ते) तव (शुष्मासः) शुष्माः बलवन्तः स्तोत्रसमूहाः (उदीरते) उद्गच्छन्ति, तेषाम् (सिन्धोः ऊर्मेः इव) समुद्रस्य तरङ्गस्य इव (स्वनः) गीतध्वनिरस्ति। त्वम् (वाणस्य) वीणादण्डस्य (पविम्) तन्त्रीम् (चोदय) प्रेरय, वीणावादनेन प्रभुभक्तिस्तोत्राणि तरङ्गयेति भावः ॥१॥

भावार्थ : मधुरैर्गीतैर्यदा वीणामञ्जीरादीनि वाद्यानि सलयं संवाद्यन्ते तदाऽपूर्वभक्तिप्रवाह उत्तरङ्गायते ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।५०।१।