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Samveda/1235

पवस्व देव आयुषगिन्द्रं गच्छतु ते मदः। वायुमा रोह धर्मणा॥१२३५

Veda : Samveda | Mantra No : 1235

In English:

Seer : nidhruviH kaashyapaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : pavasva deva aayuShagindra.m gachChatu te madaH . vaayumaa roha dharmaNaa.1235

Component Words :
pavasva .devaH .aayuShak .aayu .sak .indram .gachChatu .te .madaH .vaayum. aa .roha .dharmaNaa .

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : निध्रुविः काश्यपः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में ४८३ क्रमाङ्क पर परमात्मा के विषय में व्याख्यात की गयी थी। यहाँ भी प्रकारान्तर से उसी विषय का निरूपण किया जा रहा है।

पदपाठ : पवस्व ।देवः ।आयुषक् ।आयु ।सक् ।इन्द्रम् ।गच्छतु ।ते ।मदः ।वायुम्। आ ।रोह ।धर्मणा ॥

पदार्थ : हे सोम ! हे रसमय परमात्मन् ! (देवः) आनन्ददायक आप (आयुषक्) आयु भर (पवस्व) आनन्द-रस को प्रवाहित करते रहो। (ते) आपका (मदः) आनन्द (इन्द्रम्) जीवात्मा को (गच्छतु) प्राप्त हो। आप (धर्मणा) अपने गुण-कर्म-स्वभाव के साथ (वायुम्) हमारे गतिशील मन पर (आरोह) सवार हो जाओ, अभिप्राय यह है कि मन को अपने प्रभाव से प्रभावित करो ॥१॥

भावार्थ : परमेश्वर के उपासकों के आत्मा, मन, बुद्धि आदि परम आनन्द के प्रवाह से परिप्लुत हो जाते हैं ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : निध्रुविः काश्यपः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ४८३ क्रमाङ्के परमात्मविषये व्याख्याता। अत्रापि प्रकारान्तरेण स एव विषयो निरूप्यते।

पदपाठ : पवस्व ।देवः ।आयुषक् ।आयु ।सक् ।इन्द्रम् ।गच्छतु ।ते ।मदः ।वायुम्। आ ।रोह ।धर्मणा ॥

पदार्थ : हे सोम ! हे रसमय परमात्मन् ! (देवः) मोददायकः त्वम् (आयुषक्) सम्पूर्णे आयुनि२ अनुषक्तं यथा स्यात्तथा, सर्वदा इत्यर्थः (पवस्व) आनन्दरसं प्रवाहय। (ते) तव (मदः) आनन्दः (इन्द्रम्) जीवात्मानम् (गच्छतु) प्राप्नोतु। त्वम् (धर्मणा) स्वकीयगुणकर्मस्वभावेन सह (वायुम्) अस्माकं गतिशीलं मनः (आ रोह) आरूढो भव, मनसि स्वप्रभावं वितनु इति भावः ॥१॥

भावार्थ : परमेश्वरोपासकानामात्ममनोबुद्ध्यादिकं परमानन्दप्रवाहेण परिप्लुतं जायते ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।६३।२२ ‘देवायुषगिन्द्रं’ इति पाठः। साम० ४८३।२. आयुशब्दो नपुंसकलिङ्गं आयुर्वाचको वेदे प्रयुक्तः, यथा ‘वत्सं न पूर्व आयुनि जातं रिहन्ति मातरः’ साम० ५५०।