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Samveda/1281

एष पवित्रे अक्षरत्सोमो देवेभ्यः सुतः। विश्वा धामान्याविशन्॥१२८१

Veda : Samveda | Mantra No : 1281

In English:

Seer : priyamedhaH aa~NgirasaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : eSha pavitre akSharatsomo devebhyaH sutaH . vishvaa dhaamaanyaavishan.1281

Component Words :
eShaH. pavitre .akSharat. somaH .devebhyaH .sutaH .vishvaa .dhaamaani .aavishan .aa .vishan.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : प्रियमेधः आङ्गिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : आगे ब्रह्मानन्दरस का विषय वर्णित है।

पदपाठ : एषः। पवित्रे ।अक्षरत्। सोमः ।देवेभ्यः ।सुतः ।विश्वा ।धामानि ।आविशन् ।आ ।विशन्॥

पदार्थ : (देवभ्यः) शरीर में स्थित आत्मा, मन, बुद्धि, प्राण आदियों के लिए (सुतः) अभिषुत किया गया (एषः सोमः) यह ब्रह्मानन्द-रस (पवित्रे) पवित्र अन्तरात्मा में (अक्षरत्) टपका है और (विश्वा धामानि) सब अन्नमय, प्राणमय, मनोमय आदि कोशों में (आविशन्) व्याप्त हो रहा है ॥२॥

भावार्थ : अन्तरात्मा के पवित्र होने पर ही ब्रह्मानन्दरस का अनुभव होता है ॥२॥


In Sanskrit:

ऋषि : प्रियमेधः आङ्गिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ ब्रह्मानन्दरसविषयमाह।

पदपाठ : एषः। पवित्रे ।अक्षरत्। सोमः ।देवेभ्यः ।सुतः ।विश्वा ।धामानि ।आविशन् ।आ ।विशन्॥

पदार्थ : (देवेभ्यः) शरीरस्थेभ्य आत्ममनोबुद्धिप्राणादिभ्यः (सुतः) अभिषुतः (एषः सोमः) अयं ब्रह्मानन्दरसः (पवित्रे) पूतेऽन्तरात्मनि (अक्षरत्) क्षरितोऽस्ति, किञ्च (विश्वा धामानि) सर्वान् अन्नमयप्राणमयमनोमयादिकोशान् (आविशन्) व्याप्नुवन् वर्तते ॥२॥

भावार्थ : अन्तरात्मनि पवित्रे सत्येव ब्रह्मानन्दरसानुभवो जायते ॥२॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।२८।२।