Samveda/1351
यदद्य सूर उदितेऽनागा मित्रो अर्यमा। सुवाति सविता भगः॥१३५१
Veda : Samveda | Mantra No : 1351
In English:
Seer : vasiShTho maitraavaruNiH | Devta : aadityaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH
Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.
Verse : yadadya suura udite.anaagaa mitro aryamaa . suvaati savitaa bhagaH.1351
Component Words : yat . adya . a . dya . suure . udite . ut . ite . anaagaaH . an . aagaaH . mitraH . mi . traH . aryamaa . suvaati . savitaa . bhagaH. .
Word Meaning :
Verse Meaning :
Purport :
In Hindi:
ऋषि : वसिष्ठो मैत्रावरुणिः | देवता : आदित्यः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : प्रथम मन्त्र में निष्पाप होने की प्रशंसा की गयी है।
पदपाठ : यत् । अद्य । अ । द्य । सूरे । उदिते । उत् । इते । अनागाः । अन् । आगाः । मित्रः । मि । त्रः । अर्यमा । सुवाति । सविता । भगः॥ ।
पदार्थ : (यत्) यदि (अद्य) आज (सूरे उदिते) सूर्य के उदय होने पर, मनुष्य (अनागाः) निष्पाप होता है तो (मित्रः) सबका मित्र, (अर्यमा) न्यायकारी, न्यायानुसार कर्मफलों का दाता, (भगः) भजनीय (सविता) प्रेरक परमेश्वर उसे दिनभर (सुवाति) सत्कर्मों में प्रेरित करता रहता है ॥१॥
भावार्थ : दिन के आरम्भ में यदि श्रेष्ठ विचार रहते हैं, तो ऐसी आशा होती है कि परमेश्वर की कृपा से सारा दिन निर्मल व्यतीत होगा ॥१॥
In Sanskrit:
ऋषि : वसिष्ठो मैत्रावरुणिः | देवता : आदित्यः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : तत्रादौ निष्पापत्वं प्रशंस्यते।
पदपाठ : यत् । अद्य । अ । द्य । सूरे । उदिते । उत् । इते । अनागाः । अन् । आगाः । मित्रः । मि । त्रः । अर्यमा । सुवाति । सविता । भगः॥ ।
पदार्थ : (यत्) यदि (अद्य) अस्मिन् दिने (सूरे उदिते) सूर्ये उदयं प्राप्ते सति, मनुष्यः (अनागाः) निष्पापो भवति, तर्हि (मित्रः) सर्वमित्रः, (अर्यमा) न्यायकारी, न्यायेन कर्मफलप्रदाता, (भगः) भजनीयः (सविता) प्रेरकः परमेश्वरः, तम् सर्वस्मिन् दिने (सुवाति) सत्कर्मसु प्रेरयति ॥१॥
भावार्थ : दिवसस्यारम्भे यदि मनसि सद्विचाराः सन्ति तर्हि परमेशकृपया सर्वमपि दिनं निष्कलुषं व्यत्येष्यतीत्याशास्यते ॥१॥
टिप्पणी:१. ऋ० ७।६६।४।