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Samveda/1489

अभि प्र गोपतिं गिरेन्द्रमर्च यथा विदे। सूनु सत्यस्य सत्पतिम्॥१४८९

Veda : Samveda | Mantra No : 1489

In English:

Seer : priyamedhaH aa~NgirasaH | Devta : indraH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : abhi pra gopati.m girendramarcha yathaa vide . suunu.m satyasya satpatim.1489

Component Words :
abhi . pra . gopatim . go . patim . giraa . indram . archa . yathaa . vide . suunum . satyasya . satpatim . sat . patim.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : प्रियमेधः आङ्गिरसः | देवता : इन्द्रः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में १६८ क्रमाङ्क पर परमात्मा और राजा के विषय में की जा चुकी है। यहाँ जीवात्मा का विषय लेते हैं।

पदपाठ : अभि । प्र । गोपतिम् । गो । पतिम् । गिरा । इन्द्रम् । अर्च । यथा । विदे । सूनुम् । सत्यस्य । सत्पतिम् । सत् । पतिम्॥

पदार्थ : हे मित्र ! तू (गोपतिम्) इन्द्रियों के स्वामी, (सत्यस्य सूनुम्) सत्यस्वरूप परमात्मा के पुत्र, (सत्पतिम्) श्रेष्ठ विचारों के रक्षक (इन्द्रम्) इन्द्र नामक जीवात्मा को (अभि) लक्ष्य करके (प्र अर्च) बहुत अधिक उद्बोधन-वाक्यों का उच्चारण कर, (यथा) जिससे वह (विदे) बोध प्राप्त कर ले ॥१॥

भावार्थ : मनुष्य का अपना आत्मा यदि तीव्र उद्बोधन प्राप्त कर ले, तो जगत् में उसके लिए कुछ भी दुर्लभ न हो ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : प्रियमेधः आङ्गिरसः | देवता : इन्द्रः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके १६८ क्रमाङ्के परमात्मनृपत्योः स्तुतिविषये व्याख्याता। अत्र जीवात्मविषय उच्यते।

पदपाठ : अभि । प्र । गोपतिम् । गो । पतिम् । गिरा । इन्द्रम् । अर्च । यथा । विदे । सूनुम् । सत्यस्य । सत्पतिम् । सत् । पतिम्॥

पदार्थ : हे सखे ! त्वम् (गोपतिम्) गावः इन्द्रियाणि तेषां पतिं स्वामिनम्, (सत्यस्य सूनुम्) सत्यस्वरूपस्य परमात्मनः पुत्रम् (सत्पतिम्) सद्विचाराणां रक्षकम् (इन्द्रम्) जीवात्मानम् (अभि) अभिलक्ष्य (प्र अर्च) प्रकर्षेण उद्बोधनवाक्यानि प्रोच्चारय। (यथा) येन, सः (विदे) बोधमवाप्नुयात् ॥१॥

भावार्थ : मनुष्यस्य स्वकीय आत्मा चेद् प्रोद्बुद्धस्तर्हि जगति न किमपि तत्कृते दुर्लभम् ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ८।६९।४, अथ० २०।२२।४, ९२।१, साम० १६८।