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Samveda/1766

सप्तिं मृजन्ति वेधसो गृणन्तः कारवो गिरा। ज्योतिर्जज्ञानमुक्थ्यम्॥१७६६

Veda : Samveda | Mantra No : 1766

In English:

Seer : nRRimedha aa~NgirasaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : sapti.m mRRijanti vedhaso gRRiNantaH kaaravo giraa . jyotirjaj~naanamukthyam.1766

Component Words :
saptim . mRRijanti . vedhasaH . gRRiNantaH . kaaravaH . giraa . jyotiH . jaj~naanam . ukthyam.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : नृमेध आङ्गिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में यह बताते हें कि कौन कैसे परमेश्वर की आराधना करते हैं।

पदपाठ : सप्तिम् । मृजन्ति । वेधसः । गृणन्तः । कारवः । गिरा । ज्योतिः । जज्ञानम् । उक्थ्यम्॥

पदार्थ : (गिरा) वाणी से (गृणन्तः) अर्चना करते हुए (वेधसः) मेधावी (कारवः) स्तोता लोग (उक्थ्यम्) प्रशंसनीय (ज्योतिः) प्रकाश को (जज्ञानम्) उत्पन्न करनेवाले (सप्तिम्) सप्तरश्मि सूर्य के समान विद्यमान सोम परमात्मा को (सृजन्ति) अपने आत्मा में प्रकट करते हैं ॥२॥

भावार्थ : सूर्य के समान प्रकाशक परमेश्वर की उपासना से उपासक के आत्मा में दिव्य ज्योति का प्रकाश फैल जाता है ॥२॥


In Sanskrit:

ऋषि : नृमेध आङ्गिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ के कीदृशं परमात्मानमाराध्नुवन्तीत्याह।

पदपाठ : सप्तिम् । मृजन्ति । वेधसः । गृणन्तः । कारवः । गिरा । ज्योतिः । जज्ञानम् । उक्थ्यम्॥

पदार्थ : (गिरा) वाचा (गृणन्तः) अर्चन्तः। [गृणातिः अर्चतिकर्मा। निघं० ३।१४।] (वेधसः) मेधाविनः। [वेधा इति मेधाविनाम। निघं० ३।१५।] (कारवः) स्तोतारः। [कारुः कर्ता स्तोमानाम्। निरु० ६।५।] (उक्थ्यम्) प्रशंसनीयम् (ज्योतिः) प्रकाशम् (जज्ञानम्) उत्पादयन्तम् (सप्तिम्) सप्तरश्मिं सूर्यमिव विद्यमानं सोमं परमात्मानम् (सृजन्ति) स्वात्मनि प्रकटयन्ति ॥२॥

भावार्थ : सूर्यवत् प्रकाशकस्य परमेश्वरस्योपासनेनोपासकस्यात्मनि दिव्यं ज्योतिः प्रकाशते ॥२॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।२९।२।