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Samveda/1787

उतो न्वस्य जोषमा इन्द्रः सुतस्य गोमतः। प्रातर्होतेव मत्सति (ली)।। [धा. । उ नास्ति । स्व. ।]॥१७८७

Veda : Samveda | Mantra No : 1787

In English:

Seer : binduH puutadakSho vaa aa~NgirasaH | Devta : marutaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : uto nvasya joShamaa indraH sutasya gomataH . praatarhaateva matsati.1787

Component Words :
uta . u . nu . asya . joSham . aa . indraH . sutasya . gaamataH . praataH . hotaa . iva . matsati.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : बिन्दुः पूतदक्षो वा आङ्गिरसः | देवता : मरुतः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : आगे फिर ब्रह्मानन्द का विषय है।

पदपाठ : उत । उ । नु । अस्य । जोषम् । आ । इन्द्रः । सुतस्य । गामतः । प्रातः । होता । इव । मत्सति॥

पदार्थ : (उत उ नु) और (प्रातः) प्रातःकाल (सुतस्य) ब्रह्मयज्ञ द्वारा परिस्रुत, (गोमतः) प्रकाशयुक्त (अस्य) इस ब्रह्मानन्द-रूप सोमरस के (जोषम्) सेवन की (इन्द्रः) योगी मनुष्य (मत्सति) स्तुति करता है, (होता इव) जैसे होम करनेवाला मनुष्य अग्नि की स्तुति करता है ॥३॥यहाँ उपमालङ्कार है ॥३॥

भावार्थ : जैसे प्रातःकाल देवयज्ञ में अग्नि में होम करनेवाला पुरुष अग्नि की स्तुति करता है, वैसे ही योगी ब्रह्मयज्ञ में परमात्मा की सङ्गति से प्राप्त आनन्द की स्तुति करता है ॥३॥


In Sanskrit:

ऋषि : बिन्दुः पूतदक्षो वा आङ्गिरसः | देवता : मरुतः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ पुनर्ब्रह्मानन्दविषयमाह।

पदपाठ : उत । उ । नु । अस्य । जोषम् । आ । इन्द्रः । सुतस्य । गामतः । प्रातः । होता । इव । मत्सति॥

पदार्थ : (उत उ नु) अपि च (प्रातः) प्रभातवेलायाम् (सुतस्य) ब्रह्मयज्ञेन अभिषुतस्य (गोमतः) प्रकाशयुक्तस्य (अस्य) ब्रह्मानन्दरूपस्य सोमरसस्य (जोषम्) सेवनम्। [जुषी प्रीतिसेवनयोः, तुदादिः, घञ् प्रत्ययः।] (इन्द्रः) योगी जनः (मत्सति) स्तौति। [मदि स्तुत्यादौ, लेटि सिब्विकरणे रूपम्।] (होता इव) होमकर्ता यथा यज्ञाग्निं स्तौति तथा ॥३॥अत्रोपमालङ्कारः ॥३॥

भावार्थ : यथा प्रातर्देवयज्ञेऽग्नौ होमकर्ता पुरुषोऽग्निं स्तौति तथा योगी ब्रह्मयज्ञे परमात्मसङ्गेन प्राप्तमानन्दं स्तौति ॥३॥

टिप्पणी:१. ऋ० ८।९४।६।