Donation Appeal
Choose Mantra
Samveda/608

आ प्रागाद्भद्रा युवतिरह्नः केतूंत्समीर्त्सति। अभूद्भद्रा निवेशनी विश्वस्य जगतो रात्री॥६०८

Veda : Samveda | Mantra No : 608

In English:

Seer : vaamadevo gautamaH | Devta : raatriH | Metre : anuShTup | Tone : gaandhaaraH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : aa praagaadbhadraa yuvatirahnaH ketuuntsamiirtsati . abhuudbhadraa niveshanii vishvasya jagato raatrii.608

Component Words :
aa. pra.aa.agaat. bhadraa. yuvatiH.ahnaH.a.hnaH. ketuun. sam. iirtsati. abhuut. bhadraa. niveshanii.ni.veshanii. vishvasya. jagataH. raatrii. .

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : वामदेवो गौतमः | देवता : रात्रिः | छन्द : अनुष्टुप् | स्वर : गान्धारः

विषय : अगले मन्त्र का रात्रि देवता है। रात्रिरूप युवति का वर्णन है।

पदपाठ : आ। प्र।आ।अगात्। भद्रा। युवतिः।अह्नः।अ।ह्नः। केतून्। सम्। ईर्त्सति। अभूत्। भद्रा। निवेशनी।नि।वेशनी। विश्वस्य। जगतः। रात्री। ७।

पदार्थ : प्रथम—रात्रि के पक्ष में। (भद्रा) सुखदायिनी (युवतिः) रात्रिरूप युवति (आ प्रागात्) भले प्रकार आयी है, (अह्नः) दिन की (केतून्) किरणों को (समीर्त्सति) समेट रही है। यह (रात्री) रात्रिरूप युवति (विश्वस्य) सम्पूर्ण (जगतः) संसार की (निवेशनी) विश्रामदायिनी और (भद्रा) कल्याणकारिणी (अभूत्) हुई है ॥द्वितीय—योगनिद्रा के पक्ष में। (भद्रा) सुखदायिनी (युवतिः) योगनिद्रारूप युवति (आ प्रागात्) शीघ्र ही योगमार्ग में आयी है, (अह्नः) सांसारिक विषयभोग रूप दिन के (केतून्) प्रभावों को (समीर्त्सति) संकुचित कर रही है। यह (रात्री) समाधिदशा रूप योगनिद्रा (विश्वस्य) सम्पूर्ण (जगतः) क्रियामय मनोव्यापार को (निवेशनी) सुलानेवाली और इसीलिए (भद्रा) आनन्दजनक (अभूत्) हुई है ॥७॥इस मन्त्र में रात्रि में युवतित्व के आरोप के कारण रूपकालङ्कार है। तात्पर्य यह है कि जैसे कोई युवति घर में इधर-उधर बिखरी हुई वस्तुओं को समेटती है और पति के लिए सुखदायिनी और विश्रामदायिनी होती है, वैसे ही यह रात्रि दिन में बिखरी किरणों को समेटती है और सबके लिए विश्रामदायिनी होती है ॥७॥

भावार्थ : रात्रि के समान योगसमाधिरूप निद्रा योगियों के लिए भद्र, आह्लाददायक और विश्रामदायिनी होती है ॥७॥

टिप्पणी :देवता वैश्वानर अग्नि है। परमेश्वर के प्रति स्तुतिवचनों को प्रवृत्त करने का वर्णन है।


In Sanskrit:

ऋषि : वामदेवो गौतमः | देवता : रात्रिः | छन्द : अनुष्टुप् | स्वर : गान्धारः

विषय : अथ रात्रिर्देवता। रात्रिरूपां युवतिं वर्णयति।

पदपाठ : आ। प्र।आ।अगात्। भद्रा। युवतिः।अह्नः।अ।ह्नः। केतून्। सम्। ईर्त्सति। अभूत्। भद्रा। निवेशनी।नि।वेशनी। विश्वस्य। जगतः। रात्री। ७।

पदार्थ : प्रथमः—रात्रिपक्षे। (भद्रा) सुखकरी (युवतिः) रात्रिरूपा युवतिः (आ प्रागात्) प्रकृष्टतया आगतास्ति, (अह्नः) दिवसस्य (केतून्) किरणान् (समीर्त्सति) संवेष्टयति। ऋधु वृद्धौ, संपूर्वोऽत्र वेष्टनार्थः। स्वार्थे सनि ‘आप्ज्ञप्यृधामीत्। अ० ७।४।५५’ इति धातोरच ईकारादेशः। एषा (रात्री) रात्रि-युवतिः। ‘रात्रेश्चाजसौ। अ० ४।१।३१’ इति रात्रिशब्दात् ङीपि दीर्घान्तं रूपम्। (विश्वस्य) सम्पूर्णस्य (जगतः) संसारस्य (निवेशनी) विश्रामदायिनी (भद्रा) कल्याणकरी च (अभूत्) जाताऽस्ति ॥अथ द्वितीयः—योगनिद्रापक्षे। (भद्रा) सुखकरी (युवतिः) सोमनिद्रारूपा युवतिः (आ प्रागात्) सद्य एव योगमार्गे प्राप्ताऽस्ति। (अह्नः) दिवसोपलक्षितस्य सांसारिकविषयभोगस्य (केतुन्) प्रभावान् (समीर्त्सति) संकोचयति। एषा (रात्री) समाधिदशारूपा योगनिद्रा (विश्वस्य) सम्पूर्णस्य (जगतः) क्रियामयस्य मनोव्यापारस्य (निवेशनी) प्रस्वापयित्री, अत एव (भद्रा) आनन्दजनिका (अभूत्) सम्पन्नाऽस्ति ॥७॥अत्र रात्रौ युवतित्वारूपाद् रूपकालङ्कारः। यथा काचिद् युवतिरितस्ततो गृहे विकीर्णं वस्तुजातं सञ्चिनोति, पत्ये च सुखकरी विश्रामदायिनी च भवति, तथैवेयं रात्रिर्दिवसे विकीर्णान् किरणान् संकोचयति सर्वेभ्यो विश्रामदायिनी च जायते इति तात्पर्यम् ॥७॥

भावार्थ : रात्रिरिव योगसमाधिनिद्रा योगिभ्यो भद्राऽह्लादकरी विश्रामदायिनी च भवति ॥७॥

टिप्पणी:अथ वैश्वानरोऽग्निर्देवता। परमेश्वरं प्रति स्तुतिवचांसि गच्छन्तीत्याह।