Donation Appeal
Choose Mantra
Samveda/830

एत असृग्रमिन्दवस्तिरः पवित्रमाशवः। विश्वान्यभि सौभगा॥८३०

Veda : Samveda | Mantra No : 830

In English:

Seer : jamadagnirbhaargavaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : eta asRRigramindavastiraH pavitramaashavaH . vishvaanyabhi saubhagaa.830

Component Words :
ete .asRRigram .indavaH. tiraH. pavitram .aashavaH. vishvaani .abhi .saubhagaa .sau .bhagaa .

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : जमदग्निर्भार्गवः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : प्रथम ऋचा में उपासक का व्यवहार वर्णित है।

पदपाठ : एते ।असृग्रम् ।इन्दवः। तिरः। पवित्रम् ।आशवः। विश्वानि ।अभि ।सौभगा ।सौ ।भगा ॥

पदार्थ : (एते) ये (तिरः) तिरछी गति से (आशवः) शीघ्र आगे बढ़नेवाले (इन्दवः) तेजस्वी उपासक लोग (पवित्रम्) पवित्र व्यवहार को (असृग्रम्) उत्पन्न करते हैं। इसीलिए (विश्वानि) सब (सौभगा) सौभाग्यों को (अभि) प्राप्त कर लेते हैं।

भावार्थ : जगदीश्वर की उपासना से अपने हृदय को पवित्र करके समाज में सबके प्रति पवित्र व्यवहार यदि किया जाए तो निश्चय ही सब सौभाग्य प्राप्त हो जाते हैं ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : जमदग्निर्भार्गवः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : तत्र प्रथमायामृचि उपासकव्यवहारमाह।

पदपाठ : एते ।असृग्रम् ।इन्दवः। तिरः। पवित्रम् ।आशवः। विश्वानि ।अभि ।सौभगा ।सौ ।भगा ॥

पदार्थ : (एते) इमे (तिरः) तिरश्चीनगत्या (आशवः) आशु अग्रगामिनः (इन्दवः) तेजस्विनः उपासकाः (पवित्रम्) पवित्रव्यवहारम् (असृग्रम्) असृजन् सृजन्ति। [सृज विसर्गे धातोः लडर्थे लङि प्रथमपुरुषबहुवचने असृजन् इति प्राप्ते ‘बहुलं छन्दसि’ अ० ७।१।८ इति रुडागमः, वर्णव्यत्ययेन जकारस्य गकारः, नकारस्य च मकारः।] अत एव (विश्वानि) सर्वाणि (सौभगा) सौभगानि, सौभाग्यानि (अभि) अभिप्राप्नुवन्ति ॥१॥

भावार्थ : जगदीश्वरोपासनया स्वहृदयं पवित्रं कृत्वा समाजे सर्वान् प्रति पवित्रो व्यवहारश्चेत् क्रियते तर्हि नूनं सर्वाणि सौभाग्यानि प्राप्यन्ते ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।६२।१।