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Samveda/964

इन्दो यदद्रिभिः सुतः पवित्रं परिदीयसे। अरमिन्द्रस्य धाम्ने॥९६४

Veda : Samveda | Mantra No : 964

In English:

Seer : asitaH kaashyapo devalo vaa | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : indo yadadribhiH sutaH pavitra.m paridiiyase . aramindrasya dhaamne.964

Component Words :
indo. yat .adribhiH .a .dribhiH .sutaH .pavitram .paridiiyase .pari .diiyase .aram .indrasya .dhaamne.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : असितः काश्यपो देवलो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में पुनः वही विषय है।

पदपाठ : इन्दो। यत् ।अद्रिभिः ।अ ।द्रिभिः ।सुतः ।पवित्रम् ।परिदीयसे ।परि ।दीयसे ।अरम् ।इन्द्रस्य ।धाम्ने॥

पदार्थ : हे (इन्दो) रस के भण्डार, चन्द्रमा के समान आह्लाददायक परमेश्वर ! (यत्) जब (अद्रिभिः) सिल-बट्टों के तुल्य ध्यानों से (सुतः) अभिषुत आप (पवित्रम्) पवित्र हृदय-देश में (परि दीयसे) व्याप्त होते हो, तब (इन्द्रस्य) जीवात्मा के (धाम्ने) तेज के लिए, अर्थात् जीवात्मा को तेज से प्रदीप्त करने के लिए (अरम्) पर्याप्त होते हो ॥४॥

भावार्थ : ध्यान से प्रकट किया गया परमेश्वर जीवात्मा को तेज से और ब्रह्मवर्चस से अनुप्राणित कर देता है ॥४॥


In Sanskrit:

ऋषि : असितः काश्यपो देवलो वा | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथ पुनस्तमेव विषयमाह।

पदपाठ : इन्दो। यत् ।अद्रिभिः ।अ ।द्रिभिः ।सुतः ।पवित्रम् ।परिदीयसे ।परि ।दीयसे ।अरम् ।इन्द्रस्य ।धाम्ने॥

पदार्थ : हे (इन्दो) रसागार, चन्द्रवदाह्लादक परमेश ! (यत्) यदा (अद्रिभिः) पाषाणैरिव ध्यानैः (सुतः) अभिषुतः त्वम् (पवित्रम्) परिपूतं हृदयदेशम् (परि दीयसे) परिगच्छसि, व्याप्नोषि। [दीयते गतिकर्मा। निघं० २।१४।] तदा (इन्द्रस्य) जीवात्मनः (धाम्ने) तेजसे,जीवात्मानं तेजसा दीपयितुमिति भावः (अरम्) पर्याप्तं भवसि ॥४॥

भावार्थ : ध्यानेन प्रकटीकृतः परमेश्वरो जीवात्मानं तेजसा ब्रह्मवर्चसेन चानुप्राणयति ॥४॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।२४।५, ‘परिदीयसे’ इत्यत्र ‘परि॒धाव॑सि’ इति पाठः।