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Samveda/1082

समिन्द्रेणोत वायुना सुत एति पवित्र आ। स सूर्यस्य रश्मिभिः॥१०८२

Veda : Samveda | Mantra No : 1082

In English:

Seer : ahamiiyuraa.mgirasaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : samindreNota vaayunaa suta eti pavitra aa . sa.m suuryasya rashmibhiH.1082

Component Words :
sam .indreNa .uta .vaayunaa .sutaH .eti. pavitre .aa. sam .suuryasya .rashmibhiH.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : अहमीयुरांगिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि आत्मा में ज्ञान कैसे उत्पन्न होता है।

पदपाठ : सम् ।इन्द्रेण ।उत ।वायुना ।सुतः ।एति। पवित्रे ।आ। सम् ।सूर्यस्य ।रश्मिभिः॥

पदार्थ : (इन्द्रेण) मन से (उत) और (वायुना) प्राण से (सुतः) अभिषुत ज्ञानरस (पवित्रे) पवित्र जीवात्मा में (सम् आ एति) समागत होता है और (सूर्यस्य रश्मिभिः) सूर्य की किरणों से अथवा चक्षु की वृत्तियों से (सम्) समागत होता है ॥२॥

भावार्थ : मनुष्य का आत्मा जिस ज्ञान को सञ्चित करता है,उसमें मन, प्राण, नेत्र की वृत्तियाँ, अग्नि, वायु, सूर्यकिरणें, गुरुजन सभी कारण बनते हैं ॥२॥


In Sanskrit:

ऋषि : अहमीयुरांगिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : अथात्मनि ज्ञानं कथं जायत इत्याह।

पदपाठ : सम् ।इन्द्रेण ।उत ।वायुना ।सुतः ।एति। पवित्रे ।आ। सम् ।सूर्यस्य ।रश्मिभिः॥

पदार्थ : (इन्द्रेण) मनसा (उत) अपि च (वायुना) प्राणेन (सुतः) अभिषुतो ज्ञानरसः (पवित्रे) पवित्रे जीवात्मनि (सम् आ एति) समागच्छति, किञ्च (सूर्यस्य रश्मिभिः) आदित्यस्य किरणैः यद्वा चक्षुषो वृत्तिभिः। [चक्षुरसौ आदित्यः। ऐ० आ० २।१।५।] (सम्) समागच्छति ॥२॥

भावार्थ : मनुष्यस्यात्मा यज्ज्ञानं सञ्चिनोति तत्र मनः प्राणो नेत्रवृत्तयोऽग्निर्वायुः सूर्यरश्मयो गुरुजनाः सर्वेऽपि कारणतां प्रपद्यन्ते ॥२॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।६१।८।