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Samveda/1111

यज्ञं च नस्तन्वं च प्रजां चादित्यैरिन्द्रः सह सीषधातु॥११११

Veda : Samveda | Mantra No : 1111

In English:

Seer : bhuvana aaptayaH saadhano vaa bhauvanaH | Devta : vishvedevaaH | Metre : dvipadaa triShTup | Tone : dhaivataH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : yaj~na.m cha nastanva.m cha prajaa.m chaadityairindraH saha siiShadhaatu.1111

Component Words :
yaj~nam .cha .naH .tanyam. cha .prajaam. pra .jaam .cha .aadityaiH .aa .dityaiH .indraH .saha .siiShadhaatu.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : भुवन आप्तयः साधनो वा भौवनः | देवता : विश्वेदेवाः | छन्द : द्विपदा त्रिष्टुप | स्वर : धैवतः

विषय : अगले मन्त्र में अध्यात्म विषय तथा राष्ट्र का विषय वर्णित है।

पदपाठ : यज्ञम् ।च ।नः ।तन्यम्। च ।प्रजाम्। प्र ।जाम् ।च ।आदित्यैः ।आ ।दित्यैः ।इन्द्रः ।सह ।सीषधातु॥

पदार्थ : (इन्द्रः) हमारा जीवात्मा (आदित्यैः सह) सूर्य के समान ज्ञानसाधक मन-बुद्धि सहित ज्ञानेन्द्रियों के साथ मिलकर, अथवा (इन्द्रः) राष्ट्र का राजा (आदित्यैः सह) विद्वानों के साथ मिलकर (नः) हमारे (यज्ञं च) यज्ञ को, (तन्वं च) शरीर को (प्रजां च) और सन्तति वा राष्ट्र की प्रजा को (सीषधातु) सिद्ध करे ॥२॥यहाँ श्लेषालङ्कार है ॥२॥

भावार्थ : जीवात्मा मन, बुद्धि और ज्ञानेन्द्रियों का उपयोग करके सब कुछ सिद्ध कर सकता है। उसी प्रकार विद्वान् प्रजाजन, राजा और राज्याधिकारी मिलकर पुरुषार्थ से सब यज्ञ-सुख, देह-सुख, सन्तति-सुख और प्रजा-सुख सिद्ध कर सकते हैं ॥२॥


In Sanskrit:

ऋषि : भुवन आप्तयः साधनो वा भौवनः | देवता : विश्वेदेवाः | छन्द : द्विपदा त्रिष्टुप | स्वर : धैवतः

विषय : अथाऽध्यात्मविषयो राष्ट्रविषयश्चोच्यते।

पदपाठ : यज्ञम् ।च ।नः ।तन्यम्। च ।प्रजाम्। प्र ।जाम् ।च ।आदित्यैः ।आ ।दित्यैः ।इन्द्रः ।सह ।सीषधातु॥

पदार्थ : (इन्द्रः) अस्माकं जीवात्मा (आदित्यैः सह)आदित्यवद् ज्ञानसाधनैर्मनोबुद्धिसहितैः ज्ञानेन्द्रियैः सार्धम्, यद्वा (इन्द्रः) राष्ट्रस्य राजा (आदित्यैः सह) विद्वद्भिः सार्धम् मिलित्वा (नः) अस्माकम् (यज्ञं च) अध्वरं च, (तन्वं च) देहं च, (प्रजां च) सन्ततिं राष्ट्रस्य प्रजां च (सीषधातु) साधयतु ॥२॥ अत्र श्लेषालङ्कारः ॥२॥

भावार्थ : जीवात्मा मनोबुद्धिज्ञानेन्द्रियाण्युपयुज्य सर्वं साद्धुं शक्नोति। तथैव विद्वांसः प्रजाजना राजा राज्याधिकारिणश्च मिलित्वा पुरुषार्थेन सर्वं यज्ञसुखं, देहसुखं, सन्ततिसुखं, प्रजासुखं च साद्धुं शक्नुवन्ति ॥२॥

टिप्पणी:१. ऋ० १०।१५७।२, ‘सीषधातु’ इत्यत्र ‘ची॑क्लृपाति’ इति पाठः।