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Samveda/1143

प्र वो मित्राय गायत वरुणाय विपा गिरा। महिक्षत्रावृतं बृहत्॥११४३

Veda : Samveda | Mantra No : 1143

In English:

Seer : yajata aatreyaH | Devta : mitraavaruNau | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : pra vo mitraaya gaayata varuNaaya vipaa giraa . mahikShatraavRRita.m bRRihat.1143

Component Words :
pra .vaH. mitraaya. mi .traaya .gaayata .varuNaaya .vipaa .giraa .mahikShatrau .mahi .kShatrau .RRitam .bRRihat.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : यजत आत्रेयः | देवता : मित्रावरुणौ | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : प्रथम मन्त्र में मित्र-वरुण नाम से परमात्मा और जीवात्मा का विषय वर्णित है।

पदपाठ : प्र ।वः। मित्राय। मि ।त्राय ।गायत ।वरुणाय ।विपा ।गिरा ।महिक्षत्रौ ।महि ।क्षत्रौ ।ऋतम् ।बृहत्॥

पदार्थ : हे मनुष्यो ! (वः) तुम (विपा) बुद्धिपूर्ण (गिरा) वाणी से (मित्राय) विपत्ति से त्राण करनेवाले परमात्मा के लिए और (वरुणाय) वरण करने योग्य जीवात्मा के लिए (गायत) गाओ, अर्थात् उनका गुणगान करो। हे (महिक्षत्रौ) महान् बलवाले परमात्मा और जीवात्मा ! तुम दोनों का (ऋतम्) सत्य ज्ञान और सत्य कर्म (बृहत्) महान् है ॥१॥

भावार्थ : जीवात्मा परमात्मा के साथ मित्रता स्थापित करके महान् सत्यज्ञानों को पा सकता है और महान् सत्यकर्मों को कर सकता है ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : यजत आत्रेयः | देवता : मित्रावरुणौ | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : तत्रादौ मित्रावरुणनाम्ना परमात्मजीवात्मनोर्विषयमाह।

पदपाठ : प्र ।वः। मित्राय। मि ।त्राय ।गायत ।वरुणाय ।विपा ।गिरा ।महिक्षत्रौ ।महि ।क्षत्रौ ।ऋतम् ।बृहत्॥

पदार्थ : हे मनुष्याः ! (वः) यूयम् (विपा) मेधापूर्णया। [विप इति मेधाविनाम। निघं० ३।१५।] (गिरा) वाचा (मित्राय) विपत्त्रात्रे परमात्मने। [मित्रः प्रमीतेस्त्रायते। निरु० १०।२२।] (वरुणाय) वरणीयाय जीवात्मने च (गायत) गानं कुरुत, तत्तद्गुणान् वर्णयत इत्यर्थः। हे (महिक्षत्रौ) महाबलौ परमात्मजीवात्मानौ ! युवयोः (ऋतम्) सत्यं ज्ञानं सत्यं कर्म च (बृहत्) महत् अस्ति ॥१॥२

भावार्थ : जीवात्मा परमात्मना सह सख्यं संस्थाप्य महान्ति सत्यज्ञानानि प्राप्तुं महान्ति सत्यकर्माणि च कर्तुं पारयति ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ५।६८।१।२. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिणा मन्त्रोऽयमध्यापकोपदेशकविषये व्याख्यातः।