Samveda/1212
परि नो अश्वमश्वविद्गोमदिन्दो हिरण्यवत्। क्षरा सहस्रिणीरिषः (हि)।। [धा. । उ नास्ति । स्व. ।]॥१२१२
Veda : Samveda | Mantra No : 1212
In English:
Seer : ahamiiyuraa.mgirasaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH
Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.
Verse : pari no ashvamashvavidgomadindo hiraNyavat . kSharaa sahasriNiiriShaH.1212
Component Words : pari. naH .ashvam .ashvavit .ashva.vit. gomat. indo .hiraNyavat. kShara .sahasriNiiH .iShaH.
Word Meaning :
Verse Meaning :
Purport :
In Hindi:
ऋषि : अहमीयुरांगिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : अगले मन्त्र में परमेश्वर तथा वीर मनुष्य को सम्बोधन है।
पदपाठ : परि। नः ।अश्वम् ।अश्ववित् ।अश्व।वित्। गोमत्। इन्दो ।हिरण्यवत्। क्षर ।सहस्रिणीः ।इषः॥
पदार्थ : हे (इन्दो) सम्पत्ति की वर्षा करनेवाले परमात्मन् वा वीर मनुष्य ! (अश्ववित्) प्राणबल वा अश्व प्राप्त करानेवाले आप (नः) हमारे लिए (अश्वम्) प्राणबल वा अश्वसमूह (परिक्षर) चारों ओर से बरसाओ। (गोमद्) वाणी के बल से युक्त वा धेनुओं से युक्त तथा (हिरण्यवत्) ज्योति से युक्त वा सुवर्ण से युक्त (सहस्रिणीः) सहस्र संख्यावाली (इषः) अभीष्ट सम्पदाएँ (परिक्षर) चारों ओर से बरसाओ ॥३॥
भावार्थ : परमेश्वर की कृपा से सब दिव्य तथा भौतिक सम्पदाएँ प्राप्त की जा सकती हैं। साथ ही जो वीर होते हैं, उन्हें ही सम्पदाएँ हस्तगत होती हैं और वे अन्यों को भी उन्हें प्रदान करते हैं ॥३॥
In Sanskrit:
ऋषि : अहमीयुरांगिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : अथ परमेश्वरो वीरो जनश्च सम्बोध्यते।
पदपाठ : परि। नः ।अश्वम् ।अश्ववित् ।अश्व।वित्। गोमत्। इन्दो ।हिरण्यवत्। क्षर ।सहस्रिणीः ।इषः॥
पदार्थ : हे (इन्दो) सम्पद्वर्षक परमात्मन् वीर जन वा ! (अश्ववित्) अश्वानां प्राणबलनां तुरगाणां वा लम्भकः त्वम् (नः) अस्मभ्यम्, (अश्वम्) प्राणबलम् अश्वसमूहं वा (परिक्षर) परितो वर्ष। अपि च (गोमद्) वाग्बलयुक्तं धेनुयुक्तं वा, (हिरण्यवत्) ज्योतिर्युक्तं सुवर्णयुक्तं वा यथा स्यात् तथा (सहस्रिणीः) सहस्रसंख्योपेताः (इषः) अभीष्टसम्पदः (परिक्षर) परितो वर्ष ॥३॥
भावार्थ : परमेशकृपया सर्वा दिव्या भौतिक्यश्च सम्पदः प्राप्तुं शक्यन्ते। किञ्च ते वीरा भवन्ति तेषामेव सम्पदो हस्तगता जायन्ते, ते चान्यानपि ता लम्भयन्ति ॥३॥
टिप्पणी:१. ऋ० ९।६१।३।