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Samveda/1241

पवस्व सोम महान्त्समुद्रः पिता देवानां विश्वाभि धाम॥१२४१

Veda : Samveda | Mantra No : 1241

In English:

Seer : agnaye dhiShNyo aishvaraaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : dvipadaa viraaT pa.mktiH | Tone : pa~nchamaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : pavasva soma mahaantsamudraH pitaa devaanaa.m vishvaabhi dhaama.1241

Component Words :
pavasva .soma .mahaan .samudraH .sam .udraH .pitaa .devaanaam. vishvaa .abhi. dhaama .

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : अग्नये धिष्ण्यो ऐश्वराः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : द्विपदा विराट् पंक्तिः | स्वर : पञ्चमः

विषय : प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में ४२९ क्रमाङ्क पर परमात्मा और राजा के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ पर फिर परमात्मा का विषय कहते हैं।

पदपाठ : पवस्व ।सोम ।महान् ।समुद्रः ।सम् ।उद्रः ।पिता ।देवानाम्। विश्वा ।अभि। धाम ॥

पदार्थ : हे (सोम) आनन्दरस के भण्डार परमात्मन् ! आप (महान् समुद्रः) विशाल बादल हो, (देवानाम्) दिव्यगुणों के (पिता) उत्पादक और पालक हो। आप (विश्वा धाम अभि) सब हृदय-धामों को लक्ष्य करके (पवस्व) बरसो ॥१॥यहाँ सोम परमात्मा में मेघत्व (समुद्रत्व) का आरोप होने से रूपक अलङ्कार है ॥१॥

भावार्थ : जैसे बादल भूमि पर बरस कर वनस्पति आदि को उत्पन्न करता है, वैसे ही परमेश्वर आनन्दवर्षा करके दिव्यगुणों को सृजता है ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : अग्नये धिष्ण्यो ऐश्वराः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : द्विपदा विराट् पंक्तिः | स्वर : पञ्चमः

विषय : तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ४२९ क्रमाङ्के परमात्मनृपत्योर्विषये व्याख्याता। अत्र पुनः परमात्मविषय उच्यते।

पदपाठ : पवस्व ।सोम ।महान् ।समुद्रः ।सम् ।उद्रः ।पिता ।देवानाम्। विश्वा ।अभि। धाम ॥

पदार्थ : हे (सोम) आनन्दरसागार परमात्मन् ! त्वम् (महान् समुद्रः) महान् मेघोऽसि, (देवानाम्) दिव्यगुणानाम् (पिता) जनकः पालकश्चासि। त्वम् (विश्वा धाम अभि) सर्वाणि हृदयधामानि अभिलक्ष्य (पवस्व) वर्ष ॥१॥अत्र सोमे परमात्मनि मेघत्वारोपाद् रूपकालङ्कारः ॥१॥

भावार्थ : यथा मेघो भूमौ वर्षित्वा वनस्पत्यादीन्युत्पादयति तथा परमेश्वर आनन्दवृष्ट्या दिव्यगुणान् प्रसूते ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।१०९।४, साम० ४२९।