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Samveda/1242

शुक्रः पवस्व देवेभ्यः सोम दिवे पृथिव्यै शं च प्रजाभ्यः॥१२४२

Veda : Samveda | Mantra No : 1242

In English:

Seer : agnaye dhiShNyo aishvaraaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : dvipadaa viraaT pa.mktiH | Tone : pa~nchamaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : shukraH pavasva devebhyaH soma dive pRRithivyai sha.m cha prajaabhyaH.1242

Component Words :
shukraH .pavasva. devebhyaH .soma. dive .pRRithivyai .sham .cha .prajaabhyaH .pra. jaabhya.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : अग्नये धिष्ण्यो ऐश्वराः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : द्विपदा विराट् पंक्तिः | स्वर : पञ्चमः

विषय : अब परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।

पदपाठ : शुक्रः ।पवस्व। देवेभ्यः ।सोम। दिवे ।पृथिव्यै ।शम् ।च ।प्रजाभ्यः ।प्र। जाभ्य॥

पदार्थ : हे (सोम) जगत्स्रष्टा परमात्मन् ! (शुक्रः) तेजस्वी और पवित्र आप (देवेभ्यः) दिव्य गुणों से युक्त जनों के लिए (पवस्व) तेज और पवित्रता को प्रवाहित करो। (दिवे) सूर्य के लिए, (पृथिव्यै) भूलोक के लिए और (प्रजाभ्यः) प्रजाननों के लिए (शम्) कल्याणकारी होवो ॥२॥

भावार्थ : यथाशक्ति परमात्मा के गुणों को अपने आत्मा में धारण करके हम तेज, पवित्रता और शान्ति प्राप्त कर सकते हैं ॥२॥


In Sanskrit:

ऋषि : अग्नये धिष्ण्यो ऐश्वराः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : द्विपदा विराट् पंक्तिः | स्वर : पञ्चमः

विषय : अथ परमात्मानं प्रार्थयते।

पदपाठ : शुक्रः ।पवस्व। देवेभ्यः ।सोम। दिवे ।पृथिव्यै ।शम् ।च ।प्रजाभ्यः ।प्र। जाभ्य॥

पदार्थ : हे (सोम) जगत्स्रष्टः परमात्मन् ! (शुक्रः) तेजस्वी पवित्रश्च त्वम्। [शोचतिः ज्वलतिकर्मा। निघं० १।१६, शुचिर् पूतीभावे, दिवादिः। शोचति दीप्यते शुच्यति पवित्रो भवतीति वा शुक्रः। ‘ऋज्रेन्द्राग्र०’ उ० २।२९ इति रन्प्रत्ययान्तो निपातः।] (देवेभ्यः) दिव्यगुणयुक्तेभ्यो जनेभ्यः (पवस्व) तेजः पवित्रतां च प्रवाहय। (दिवे) सूर्याय (पृथिव्यै) भूलोकाय, (प्रजाभ्यः) प्रजाजनेभ्यश्च (शम्) कल्याणकरो भव ॥२॥

भावार्थ : यथाशक्ति परमात्मगुणान् स्वात्मनि धारयित्वा वयं तेजः पवित्रतां शान्तिं च प्राप्तुं शक्नुमः ॥२॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।१०९।५, ‘प्रजाभ्यः’ इत्यत्र ‘प्र॒जायै॑’ इति पाठः।