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Samveda/1292

स सुतः पीतये वृषा सोमः पवित्रे अर्षति। विघ्नन्रक्षासि देवयुः॥१२९२

Veda : Samveda | Mantra No : 1292

In English:

Seer : raahuugaNa aa~NgirasaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : sa sutaH piitaye vRRiShaa somaH pavitre arShati . vighnanrakShaa.m si devayuH.1292

Component Words :
saH . sutaH . piitaye . vRRiShaa . somaH . pavitre . arShati . vighnan . vi . ghnan . rakShaasi . devayuH.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : राहूगण आङ्गिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : प्रथम मन्त्र में परमात्मा की उपासना का फल बताया गया है।

पदपाठ : सः । सुतः । पीतये । वृषा । सोमः । पवित्रे । अर्षति । विघ्नन् । वि । घ्नन् । रक्षासि । देवयुः॥

पदार्थ : (पीतये) रसास्वादन करने के लिए (सुतः) उपासना किया गया (सः) वह (वृषा) आनन्द की वर्षा करनेवाला (सोमः) रसमय परमेश्वर (पवित्रे) पवित्र अन्तरात्मा में (अर्षति) पहुँच रहा है। (देवयुः) दिव्यगुण प्रदान करना चाहता हुआ वह (रक्षांसि) पापों को (विघ्नन्) विशेष रूप से नष्ट कर रहा है ॥१॥

भावार्थ : परमात्मा की उपासना से अन्तरात्मा में दिव्यगुण आते हैं और दोष नष्ट होते हैं ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : राहूगण आङ्गिरसः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः

विषय : तत्रादौ परमात्मोपासनायाः फलमाह।

पदपाठ : सः । सुतः । पीतये । वृषा । सोमः । पवित्रे । अर्षति । विघ्नन् । वि । घ्नन् । रक्षासि । देवयुः॥

पदार्थ : (पीतये) पानाय, रसास्वादनाय (सुतः) उपासितः (सः) असौ (वृषा) आनन्दवर्षकः (सोमः) रसमयः परमेश्वरः (पवित्रे) शुद्धेऽन्तरात्मनि (अर्षति) गच्छति। (देवयुः) दिव्यगुणान् प्रदातुं कामयमानः सः। [छन्दसि परेच्छायां क्यच उपसंख्यानम्। अ० ३।१।८। वा० इत्यनेन परेच्छायां क्यच्, क्याच्छन्दसि। अ० ३।२।१७० इति उ प्रत्ययः।] (रक्षांसि) पापानि (विघ्नन्) विनाशयन् भवति ॥१॥

भावार्थ : परमात्मोपासनेनान्तरात्मनि दिव्यगुणाः समायान्ति, दोषाश्च विनश्यन्ति ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।३७।१।