Samveda/1634
अश्वं न त्वा वारवन्तं वन्दध्या अग्निं नमोभिः। सम्राजन्तमध्वराणाम्॥१६३४
Veda : Samveda | Mantra No : 1634
In English:
Seer : shunaH shepa aajiigartiH | Devta : agniH | Metre : gaayatrii | Tone : ShaDjaH
Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.
Verse : ashva.m na tvaa vaaravanta.m vandadhyaa agni.m namobhiH . samraajantamadhvaraaNaam.1634
Component Words : ashvam . na . tvaa . vaaravantam . vandadhyai . agnim . namobhiH . samraajantam . sam . raajantam . adhvaraaNaam.
Word Meaning :
Verse Meaning :
Purport :
In Hindi:
ऋषि : शुनः शेप आजीगर्तिः | देवता : अग्निः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में (१७ क्रमाङ्क पर) परमात्मा को सम्बोधन की गयी थी। यहाँ एक साथ परमात्मा और आचार्य दोनों को कह रहे हैं।
पदपाठ : अश्वम् । न । त्वा । वारवन्तम् । वन्दध्यै । अग्निम् । नमोभिः । सम्राजन्तम् । सम् । राजन्तम् । अध्वराणाम्॥
पदार्थ : (वारवन्तम्) मलिनता-निवारक किरण रूप बालों से युक्त (अश्वं न) सूर्य के समान (वारवन्तम्) दोष-निवारण के सामर्थ्य से युक्त, (अध्वराणाम्) सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति आदि यज्ञों के वा शिक्षा-यज्ञों के (राजन्तम्) सम्राट् (अग्निं त्वाम्) आप नायक परमात्मा वा आचार्य को (नमोभिः) नमस्कारों से (वन्दध्यै) वन्दना करने के लिए, मैं बुलाता हूँ ॥१॥यहाँ श्लिष्टोपमालङ्कार है ॥१॥
भावार्थ : जैसे सूर्य अपने किरण-समूह से भूमि पर स्थित मलिनता आदि को दूर करता है, वैसे ही परमेश्वर और आचार्य अपने स्वच्छ करने के सामर्थ्य से मनुष्यों के पाप, दुर्गुण, दुर्व्यसन, दुःख आदि दूर करते हैं ॥१॥
In Sanskrit:
ऋषि : शुनः शेप आजीगर्तिः | देवता : अग्निः | छन्द : गायत्री | स्वर : षड्जः
विषय : तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके १७ क्रमाङ्के परमात्मानं सम्बोधिता। अत्र युगपत् परमात्माऽऽचार्यश्च प्रोच्यते।
पदपाठ : अश्वम् । न । त्वा । वारवन्तम् । वन्दध्यै । अग्निम् । नमोभिः । सम्राजन्तम् । सम् । राजन्तम् । अध्वराणाम्॥
पदार्थ : (वारवन्तम्) मालिन्यनिवारक रश्मिकेशयुक्तम् (अश्वं न) आदित्यमिव (वारवन्तम्) दोषनिवारणसामर्थ्ययुक्तम्, (अध्वराणाम्) सृष्ट्युत्पत्तिस्थित्यादियज्ञानां शिक्षायज्ञानां वा (राजन्तम्) सम्राजम् (अग्निं त्वाम्) नायकं परमात्मानम् आचार्यं वा त्वाम् (नमोभिः) नमस्कारैः (वन्दध्यै) वन्दितुम्, आह्वयामः इति शेषः। [अत्र ‘तुमर्थेसे०’ अ० ३।४।९ इति तुमर्थे कध्यै प्रत्ययः] ॥१॥२अत्र श्लिष्टोपमालङ्कारः ॥१॥
भावार्थ : यथा सूर्यः स्वरश्मिजालेन भूमिष्ठं मलादिकमपनयति तथा परमेश्वर आचार्यश्च स्वशोधकसामर्थ्येन जनानां पापदुर्गुणदुर्व्यसनदुःखादिकं दूरीकुरुतः ॥१॥
टिप्पणी:१. ऋ० १।२७।१, साम० १७।२. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिर्मन्त्रमिमं विद्वत्पक्षे भौतिकाग्निपक्षे च व्याचष्टे।