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Samveda/1326

पवस्व देववीतय इन्दो धाराभिरोजसा। आ कलशं मधुमान्त्सोम नः सदः॥१३२६

Veda : Samveda | Mantra No : 1326

In English:

Seer : manuraapsavaH | Devta : pavamaanaH somaH | Metre : uShNik | Tone : RRIShabhaH

Subject : English Translation will be uploaded as and when ready.

Verse : pavasva devaviitaya indo dhaaraabhirojasaa . aa kalasha.m madhumaantsoma naH sadaH.1326

Component Words :
pavasva . devaviitaye . deva . viitaye . indo . dhaaraabhiH . ojasaa . aa . kalasham . madhumaana . soma . naH . sadaH.

Word Meaning :


Verse Meaning :


Purport :


In Hindi:

ऋषि : मनुराप्सवः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : उष्णिक् | स्वर : ऋषभः

विषय : प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ५७१ क्रमाङ्क पर ब्रह्मानन्द-रस के विषय में की गयी थी। यहाँ भी उसी विषय का वर्णन करते हैं।

पदपाठ : पवस्व । देववीतये । देव । वीतये । इन्दो । धाराभिः । ओजसा । आ । कलशम् । मधुमान । सोम । नः । सदः॥

पदार्थ : हे (इन्दो) रस से भिगोनेवाले परमेश्वर ! (देववीतये) दिव्य गुणों की प्राप्ति के लिए (धाराभिः) आनन्द की धाराओं के साथ (ओजसा) वेगपूर्वक (पवस्व) हमारे अन्तःकरण में बहो। हे (सोम) रस के भण्डार ! (मधुमान्) मधुर आप (नः) हमारे (कलशम्) जीवात्मारूप कलश में (आ सदः) आकर स्थित होवो ॥१॥

भावार्थ : परमात्मा के ध्यान में मग्न योगी लोग परमात्मा के पास से अपनी मनोभूमि में झरते हुए आनन्द-रस के झरने का साक्षात् अनुभव करते हैं ॥१॥


In Sanskrit:

ऋषि : मनुराप्सवः | देवता : पवमानः सोमः | छन्द : उष्णिक् | स्वर : ऋषभः

विषय : तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ५७१ क्रमाङ्के ब्रह्मानन्दरसविषये व्याख्याता। अत्रापि स एव विषयो वर्ण्यते।

पदपाठ : पवस्व । देववीतये । देव । वीतये । इन्दो । धाराभिः । ओजसा । आ । कलशम् । मधुमान । सोम । नः । सदः॥

पदार्थ : हे (इन्दो) रसेन आर्द्रीकर्तः परमेश ! त्वम् (देववीतये) दिव्यगुणानां प्राप्तये (धाराभिः) आनन्दधाराभिः (ओजसा) वेगेन (पवस्व) अस्मदन्तःकरणे प्रक्षर। हे (सोम) रसागार ! (मधुमान्) मधुमयः त्वम् (नः) अस्माकम् (कलशम्) जीवात्मरूपम् (आ सदः) आसीद। [सदेर्विध्यर्थे लुङि रूपम्] ॥१॥

भावार्थ : परमात्मध्यानमग्ना योगिनः परमात्मनः सकाशात् स्वमनोभूमौ निर्झरन्तमानन्दरसनिर्झरं साक्षादनुभवन्ति ॥१॥

टिप्पणी:१. ऋ० ९।१०६।७, साम० ५७१।